मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

अश्रु


मेरे दिल का दर्द 
तुम्हारी आँखों में 
भीगा - भीगा सा 
अश्रु बन पले 
पर ,सुनो न !
उन अश्रुओं को 
बहाने वाली पलकें 
बस मेरी ही हों .....



शब्द जो दे जाएँ 
अश्रु अपनी ही 
पलकों की कोरों में 
न कहो खारा उन
संगदिल शब्दों को 
यही तो न जाने कितनी 
भूली - बिसरी गलियों से 
बटोर लाते हैं नमक 
ज़िन्दगी में ....


ये चंद बूँदें 
कभी आँखें तो 
कभी कपोलों को 
तर कर 
अपनी राह चल 
यूँ ही 
ओस बन उड़ जातीं 
बस मन को भिगो 
अंतर्मन भर 
बोझिल कर जाती हैं .....
                             -निवेदिता 



17 टिप्‍पणियां:

  1. पीड़ा मन की, बह जाती है
    बन कर पानी पानी।

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  2. भूली - बिसरी गलियों से
    बटोर लाते हैं नमक
    ज़िन्दगी में ....
    बहुत खूब ...

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  3. ओस बन उड़ जातीं
    बस मन को भिगो
    अंतर्मन भर
    बोझिल कर जाती हैं .....

    गहन और हृदय स्पर्शी भाव ....

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  4. क्यों छलक रहा दुःख मेरा उषा की मृदु पलकों से
    हाँ उलझ रहा सुख मेरा निशा की घन अलकों में

    रचना से संप्रेषित भाव , मन के द्वन्द को उकेरते है .

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  5. मन को भिगोती....
    खारा करती रचना...
    सस्नेह
    अनु

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  6. मेरे दिल का दर्द
    तुम्हारी आँखों में
    भीगा - भीगा सा
    अश्रु बन पले
    पर ,सुनो न !
    उन अश्रुओं को
    बहाने वाली पलकें
    बस मेरी ही हों .....

    बहुत खूब...

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  7. मेरे दिल का दर्द
    तुम्हारी आँखों में
    भीगा - भीगा सा
    अश्रु बन पले
    पर ,सुनो न !
    उन अश्रुओं को
    बहाने वाली पलकें
    बस मेरी ही हों .....
    बहुत ही अच्छी कविता |

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  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है । आपको बधाई।

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  9. मेरे दिल का दर्द
    तुम्हारी आँखों में
    भीगा - भीगा सा
    अश्रु बन पले
    पर ,सुनो न !
    उन अश्रुओं को
    बहाने वाली पलकें
    बस मेरी ही हों .....
    kya khoob dedication hai....

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