आज एक कागज़
अपना पता पूछते
फिर से चला आया
हाँ !मेरे ही हाथों में
समेटे हुए अपने में
चंद गिनतियाँ और
नाम भी नक्षत्रों के
लगा एक सम्मन सा
क्यों ?
अरे उसमें टंका था
मेरे नाम का
प्रथमाक्षर .....
वो समय .. वो तिथि
जब ली थी मैंने
अपनी पहली सांस !
पता नहीं क्यों
पर वो अजनबी सा
अनपहचाना ही
रह गया ...
शायद वो जन्म का
बस एक नन्हा सा
लम्हा बना रह गया
जन्म - कुंडली सा
विस्तृत - विस्तार
अभिनव - आयाम
तो तब मिला
जब आये तुम साथ !
-निवेदिता
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंक्या बात...बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसादर, अरुन शर्मा
www.arunsblog.in
पल पल में जब सदी छिपी हों,
जवाब देंहटाएंउद्गम पाछे नदी रुकी हों।
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
धन्यवाद आपको !!!
हटाएंkya kahu? bas dil ko chu gayi puri rachna.....bilkul alag si alag si lagi...
जवाब देंहटाएंसही जगह पहुंची ,क्योंकि ये बस दिल की तो बात थी ..:)
हटाएंबहुत बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट रचना,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : प्यार न भूले,,,
wah bahut khoob likha hai apne ....badhai sweekaren
जवाब देंहटाएंखूबसूरत
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट "10 रुपये का नोट नहीं , अब 10 रुपये के सिक्के " को भी एक बार अवश्य पढ़े । धन्यवाद
मेरा ब्लॉग पता है :- harshprachar.blogspot.com
यह विस्तार भी शायद उस कागज में लिखा था :):)
जवाब देंहटाएं