आज शाम हम अपने घर के पास के बाज़ार में गये । वहाँ की चमक - दमक जैसे हर आने वाले को थामे रखने का प्रयास कर रही थी । हर कदम पर कोई न कोई वस्तु सजी हुई बिकने को तत्पर हर आने वाले को निहार रही थी , और उससे भी दोगुनी अधीरता उसके मालिक की निगाहों में थी । लग रहा था कि हर कोई किसी अपने के बिक जाने पर प्रफुल्लित हो रहा था ।
आज के बाज़ार में ,सबसे अधिक स्थान मिट्टी से बने सामानों ने घेर रखा था - कहीं वो चिराग के रूप में थे , तो कहीं किसी सलोनी सी मूरत के रूप में । वहीं वो खरीदार के रूप में भी थी । जब भी कोई किसी चिराग को खरीदना चाह रहा था , उस नन्हे से चिराग का ऐसा सूक्ष्म निरीक्षण करता था कि उसका आकार सही है अथवा नहीं ....... कहीं किसी कोने में टेढ़ा तो नहीं रह गया अथवा उसका तल असमतल तो नहीं है अन्यथा जलाए जाने पर सारा तेल बह कर नष्ट हो जाएगा ।
उस नन्हे से चिराग का ऐसा सूक्ष्म अवलोकन करने वाले , इस कटु सत्य को सर्वथा भूल ही जाते हैं कि उस चिराग ने तो बस कुछ घंटे ही जलना है ,परन्तु खरीदार के रूप में सामने खड़ा एक माटी का खिलौना ही है ! इसको तो पूरी उम्र भर साथ रहना है और खिलौने के टूट जाने पर उसका नाम ( ? ) रह जाएगा । अपनी अंतरात्मा का सूक्ष्म अवलोकन तो हम गलती से भी कभी नहीं करते हैं । अपनी सोच की विकृतियों के बारे में सोचना तो दूर स्वीकार करना भी बहुत दुष्कर हो जाता है । अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार को देखना तो एक असम्भव कार्य लगता है ।
एक - दूसरे को हम हर वर्ष याद दिलाते हैं कि बिजली की लड़ियों के स्थान पर मिट्टी के चिराग को ही रौशन करेंगे , परन्तु जब व्यवहारिकता में ये बात उतारने की बात आती है तो हम उसमें लगने वाले तेल - घी और सबसे बढ़ कर श्रम को याद करके बिद्युत - वल्लरी से घर सजा लेते हैं । इस माटी के खिलौने को सुविधा का नशा कुछ अधिक ही हो गया है !
आज तो बस यही लग रहा था मिट्टी ने मिट्टी को खरीदा । ये खरीदने वाली मिट्टी विचित्र सी दृष्टि रखती है .... इसकी दूर की निगाहें तो बहुत तीखी हैं परन्तु अपने एकदम पास की चीजों को परख सके और निखार सके ऐसी निगाह है भी नहीं और इसकी चाहत भी नहीं है ....... पर कभी कभार ये सोच लेना चाहिए कि एक दिन इस माटी को भी माटी में ही मिल जाना है !
-निवेदिता
आज के बाज़ार में ,सबसे अधिक स्थान मिट्टी से बने सामानों ने घेर रखा था - कहीं वो चिराग के रूप में थे , तो कहीं किसी सलोनी सी मूरत के रूप में । वहीं वो खरीदार के रूप में भी थी । जब भी कोई किसी चिराग को खरीदना चाह रहा था , उस नन्हे से चिराग का ऐसा सूक्ष्म निरीक्षण करता था कि उसका आकार सही है अथवा नहीं ....... कहीं किसी कोने में टेढ़ा तो नहीं रह गया अथवा उसका तल असमतल तो नहीं है अन्यथा जलाए जाने पर सारा तेल बह कर नष्ट हो जाएगा ।
उस नन्हे से चिराग का ऐसा सूक्ष्म अवलोकन करने वाले , इस कटु सत्य को सर्वथा भूल ही जाते हैं कि उस चिराग ने तो बस कुछ घंटे ही जलना है ,परन्तु खरीदार के रूप में सामने खड़ा एक माटी का खिलौना ही है ! इसको तो पूरी उम्र भर साथ रहना है और खिलौने के टूट जाने पर उसका नाम ( ? ) रह जाएगा । अपनी अंतरात्मा का सूक्ष्म अवलोकन तो हम गलती से भी कभी नहीं करते हैं । अपनी सोच की विकृतियों के बारे में सोचना तो दूर स्वीकार करना भी बहुत दुष्कर हो जाता है । अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के आधार को देखना तो एक असम्भव कार्य लगता है ।
एक - दूसरे को हम हर वर्ष याद दिलाते हैं कि बिजली की लड़ियों के स्थान पर मिट्टी के चिराग को ही रौशन करेंगे , परन्तु जब व्यवहारिकता में ये बात उतारने की बात आती है तो हम उसमें लगने वाले तेल - घी और सबसे बढ़ कर श्रम को याद करके बिद्युत - वल्लरी से घर सजा लेते हैं । इस माटी के खिलौने को सुविधा का नशा कुछ अधिक ही हो गया है !
आज तो बस यही लग रहा था मिट्टी ने मिट्टी को खरीदा । ये खरीदने वाली मिट्टी विचित्र सी दृष्टि रखती है .... इसकी दूर की निगाहें तो बहुत तीखी हैं परन्तु अपने एकदम पास की चीजों को परख सके और निखार सके ऐसी निगाह है भी नहीं और इसकी चाहत भी नहीं है ....... पर कभी कभार ये सोच लेना चाहिए कि एक दिन इस माटी को भी माटी में ही मिल जाना है !
-निवेदिता
गहन विश्लेषण बहुत सुन्दर लेख |
जवाब देंहटाएंइस सत्य को सोचने और समझने का वक़्त ही तो नहीं है किसी के पास .... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनायें
गहन उत्कृष्ट आलेख,,,,,
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
बहुत बड़ी सारी बात कह डाली निवेदिता...
जवाब देंहटाएंहम तो ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के दीपक जलाने की कोशिश करते हैं...
सुन्दर लेखन..
दीपोत्सव की शुभकामनाएँ.
सस्नेह
अनु
मिटटी के पुतलों को पंचतत्व में विलीन तो होना ही है बस थोड़े समय के लिए मिटटी के माधों बने रहते है .
जवाब देंहटाएंबढिया लेख, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधनतेरस की बहुत बहुत शुभकमानएं
एक नजर मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर डालें
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/11/blog-post_10.html?spref=fb
बेहतरीन प्रस्तुति दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहम सबका जीवन थोड़ा अधिक है, बस यही अन्तर है।
जवाब देंहटाएंगहन विश्लेषण
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
मन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ
बहुत ख़ूब! धनतेरस और दीपावली की ढेरों मंगल कामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 12-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1061 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
शुक्रिया गाफ़िल जी ....:)
हटाएंसार्थक सोच ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदीपावली और धनतेरस की शुभकामनाएँ
गहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंत्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!
गहन खूबसूरत प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें,,,
RECENT POST:....आई दिवाली,,,100 वीं पोस्ट,
म्यूजिकल ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें,
निवेदिता के मित्रों से क्षमा याचना के साथ प्रथम प्रयास
जवाब देंहटाएंजलता दीपक माटी का बोला मेरी माटी से
मेरा साथ दिया लाखों ने, तेरे कितने होंगे
शुक्रिया भाई ..... ब्लॉग जगत में स्वागत ...:)
हटाएंआपकी लाजवाब पंक्तियों ने कुछ दस्तक सी दी है ......
सारे चर्चे इस माटी के
माटी में ही माटी मिले
माटी न कभी माटी बने
इस माटी को मति मिले
माटी को भी गति मिले ......
कुम्हार में ही वो मति होती है
हटाएंउसकी चाक में ही वो गति होती है
माटी भीगती है, सड़ती है
मसली जाती है, चक्कर खाती है
लेकिन फिर उसे कोइ माटी नहीं कहता
वो पूजा का दिया कहलाती है
शुक्रिया यशवंत ...:)
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,
गहन विश्लेषण ....
जवाब देंहटाएंआपको सहपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
:-)
गहन भाव लिये बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की अनंत शुभकामनाएं
लग रहा था कि हर कोई किसी अपने के बिक जाने पर प्रफुल्लित हो रहा था ।आज तो बस यही लग रहा था मिट्टी ने मिट्टी को खरीदा । पर कभी कभार ये सोच लेना चाहिए कि एक दिन इस माटी को भी माटी में ही मिल जाना है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही कहा निवेदिता जी .................