"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
रविवार, 31 अक्तूबर 2010
माला में १०८ मणियां ही क्यों ?
जप करने के लिये माला की आवश्यकता होती है । यह माला रुद्राक्ष की हो सकती है,तुलसी अथवा स्फ़टिक की भी। परन्तु रुद्राक्ष की माला अन्य मालाओं की अपेक्षा श्रेष्ठ होती है , क्योंकि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होतीहै। जप के लिये माला में मणियों की संख्या भी निर्धारित होती है । बिना मणियों की पूरी संख्या के जप नहीं किया जाता । इसके लिये माला में मणियों की संख्या १०८ निर्धारित की गयी है । परन्तु यह जिग्यासा भी होती है कि मणियां १०८ ही क्यों ? कम या अधिक क्यों नहीं ?
इस विषय में धार्मिक ग्रन्थों में अनेक मत हैं ।योगचूडामडी में सांसों के आधार पर १०८ मणियों की संख्या निर्धारित की गयी है । हम २४ घंटों में २१,६०० बार सांस लेते हैं । १२ घंटे का समय अपनी दिनचर्या हेतु निर्धारित है और बाकी के १२ घंटे का समय देव आराधना हेतु । अर्थात १०,८०० सांसों में ईष्टदेव का स्मरण करना चाहिये , किन्तु इतना समय दे पाना मुश्किल है । अत: अन्तिम दो शून्य हटा कर शेष १०८ सांसों में प्रभु स्मरण का विधान बनाया गया है । इसी प्रकार मणियों की संख्या १०८ निर्धारित की गयी है। जप विधान में धीरे धीरे जप करने का फ़ल सॊ गुणा बताया गया है । १०८ को सॊ से गुणा करने से १०,८०० सांसों की निर्धारित संख्या पूरी हो जाती है । अत: माला के १०८ मणियों की संख्या निराधार नहीं है ।
एक अन्य मत के अनुसार हिन्दू धर्म को मानने वाले सूर्य उपासना करते हैं और अर्ध्य देते हैं ।सूर्य के १२ भेद होते हैं ,उनमे बारहवां भेद है विष्णु । वह सूर्य ब्रह्म रूप होता है । ब्रह्म का अंक ९ है । इस प्रकार १२ अंक वाले सूर्य का ९ अंक वाले ब्रह्म के साथ गुणा करने पर १०८ संख्या होती है । सूर्यात्मक विष्णु का जप करने का विधान १०८ बार है । इसलिये माला में १०८ मणियों का निर्धा्रण उचित प्रतीत होता है ।
कुछ अन्य के अनुसार माला की मणियों की संख्या का निर्धारण नक्षत्रों के आधार पर है । नक्षत्र २७ होते हैं और हर नक्षत्र के चार चरण होते हैं । इस प्रकार २७*४=१०८होताहै । नक्षत्रों की माला जहां दोनो ओर से मिलती है वहां सुमेरु पर्वत है और जप माला में भी सुमेरु होता है । इस तरह माला में मणियों की संख्या १०८ सिद्ध होती है ।
दूसरी विचारधारा के अनुसार ...सॄष्टि के रचयिता ब्रह्म हैं । यह एक शाश्वत सत्य है। उससे उत्पन्न अहंकार के दो गुण होते हैं , बुद्धि के तीन , मन के चार , आकाश के पांच , वायु के छ , अग्नि के सात , जल के आठ और पॄथ्वी के नौ गुण मनुस्मॄति में बताये गये हैं । प्रक्रिति से ही समस्त ब्रह्मांड और शरीर की सॄष्टि होती है। ब्रह्म की संख्या एक है जो माला मे सुमेरु की है । शेष प्रकॄति के २+३+४+५+६+७+८+९=४४ गुण हुये ।जीव ब्रह्म की परा प्रकॄति कही गयी है , इसके १० गुण हैं । इस प्रकार यह संख्या ५४ हो गयी , जो माला के मणियों की आधी संख्या है ,जो केवल उत्पत्ति की है । उत्पत्ति के विपरीत प्रलय भी होती है , उसकी भी संख्या ५४ होगी । इस माला के मणियों की संख्या १०८ होती है । माला में सुमेरु ब्रह्म जीव की एकता दर्शाता है । ब्रह्म और जीव मे अंतर यही है कि ब्रह्म की संख्या एक है और जीव की दस ,इसमें शून्य माया का प्रतीक है , जब तक वह जीव के साथ है तब तक जीव बंधन में है । शून्य का लोप हो जाने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है ।
माला का यही उद्देश्य है कि जीव जब तक १०८ मणियों का विचार नहीं करता और कारण स्वरूप सुमेरु तक नहीं पहुंचता तब तक वह इस १०८ में ही घूमता रहता है । जब सुमेरु रूप अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान प्राप्त कर लेता है तब वह १०८ से निवॄत्त हो जाता है अर्थात माला समाप्त हो जाती है । फ़िर सुमेरु को लांघा नहीं जाता बल्कि उसे उलट कर फ़िर शुरु से १०८ का चक्र प्रारंभ किया जाता है
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