तुम मेरा दक्षिण पथ बनो
मैं बनूं पूर्व दिशा तुम्हारी
तुम पर हो अवसान मेरा
मै बनं सूर्य किरण तुम्हारी
तुम तक जा कर श्वास थमे मेरी
इससे बडी अभिलाषा क्या मेरी
अगर अन्तिम श्वास पर मिलो तुम
इससे परे शगुन क्या विचारूं
हर पल अब तो बस पन्थ निहारूं
जीवन यात्रा का हो अवसान
बन पर्तिनधि तुम काल के
आ विचरो मेरे श्वास पथ पर
तुम मेरा दक्षिण पथ बनो
मै बनूं......
सुंदर कविता।
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