फ़ूल हूं खुशबू नहीं
जो महक कर उड़ जाऊं
कहीं ठहर न पाऊं !
काश कि होती काटां ही
चुभन ही सही कुछ तो दे जाती
टीस बन के कभी याद आ जाती !
फ़ूल ही जब हूंमैं
कैसे कहूं बिखर भी न पाऊंगी
अगर बिखरी तो कीच में मिल जाउंगी !
बिखरने से भी क्या फ़र्क है
बिखरना है तो जरूर बिखरुंगी
बिखर के भी सॄजन कुछ कर जाउंगी !
फ़ूल हूं तो फ़ूल की तक़्दीर
बिखर के पहुंचू शायद अभीष्ट तक
खिले हुए न पहुंच सकी तो क्या !
फ़ूल की भी क्या किस्मत
ग़र पा सका न जगह सेहरे में
क्या ख़ुद का मज़ार भी देगा उसे ठुकरा ?
अच्छी सोच लिए खूबसूरत रचना ..
जवाब देंहटाएंकश्मकश को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है.
जवाब देंहटाएंकल 30/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंkhoobsurat rachna, khoobsurat Abhivyakti.
जवाब देंहटाएंhttp://neelamkahsaas.blogspot.com/2011/09/blog-post.html
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti mam
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