"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
लघुकथा : आवाज़ की सीलन
क्या हुआ ? कुछ नहीं । फिर ... हूँ ! तुम्हारी आवाज़ क्यों इतनी भीगी सी है ? आवाज़ की ख़ामोशी में ,वज़ह की सीलन भी जज़्ब है । #निवी
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