जब टूट गयी चप्पल !
पैर जो हमारा पूरा वजन उठाते हैं ,उन पर अधिकतर को बहुत कम ही ध्यान देते देखा है । जब पैर अनदेखी का शिकार होते हैं तो चप्पलों की ऊपरी चमक दमक पर ही ध्यान रहता है न कि उनके स्वास्थ्य ( मजबूती ) पर । इस लापरवाही का खामियाजा तो भरना ही पड़ता है और मैंने भी भरा । दो घटनाएं बताती हूँ 😄
घर के रिनोवेशन का काम चल रहा था ,तभी एक शादी में जाने का निमंत्रण आया । काम से थका तन ,मन को सहला गया कि आज तो बिना मेहनत के ही अच्छा भोजन मिलेगा । बिखरे सामानों में खोजने पर भी मनचाही चप्पल नहीं मिली तो एक रिजेक्टेड चप्पल पहन ली कि साड़ी के नीचे से चप्पल कौन देखेगा । वेन्यू पर हम बारात के साथ ही पहुँचे । बस दूल्हे को देखने की उत्सुकता में पैर मुड़ा और चप्पल का एक स्ट्रेप हवा में और मैं लड़खड़ा गयी । बिना कुछ जताए ,पास पड़ी हुई कुर्सी पर बैठ गयी । पतिदेव ने खाने के लिए चलने को कहा ,तब बताया कि मैं तो चल नहीं पाऊँगी वो खा लें । बिचारे परेशान से बोले ,"तुम नहीं खा पाओगी तो छोड़ो घर चलते हैं ।" मैं तुरन्त बोल पड़ी ,"सुनो ! आप खाना खा लो ,अब वापस जा कर मैं तो नहीं बनानेवाली ।" पास से गुजरते वेटर से स्नैक्स ले अपना काम चलाया मैंने 😄
दूसरी घटना बच्चों के स्कूल की है । पेरेंट्स मीटिंग में गए थे हम और दोनों बच्चों की खूब सारी तारीफें सुन बड़े खुश हो कर सीढ़ियों से उतर रहे थे कि बेटे की निगाह में मेरी चाल में बदलाव नज़र आ गया । कारण पूछने पर पहले तो मैंने टालने की कोशिश की फिर टूटी चप्पल दिखा दी जिसके अँगूठे में पैर फँसा कर बार - बार दूसरे पैर के सहारे से सीधी हो जाती थी । उस दिन चप्पल भी हील वाली पहन ली थी ,तो पंजों पर चल रही थी कि बहुत विचित्र न दिखूँ । दरअसल छोटे बेटे की क्लास से उसकी खूब सारी तारीफ़ सुन कर निकलते ही चप्पल के टूटने का एहसास हो गया था ,परन्तु बड़े बेटे की भी तारीफ़ सुनने की इच्छा ने मन को बल दिया और चल पड़ी थी मैं सोचती हुई कि यदि एड़ी टूट जाये तब भी पंजों में मनोबल से इतना बल भर लेना चाहिए कि वो शरीर का वजन उठा सकें । #निवी
आदरणीय संस्मरण और सबक दोनों । अच्छी अभिव्यक्ति । बहुत बधाई ।
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