अम्बर बरसा आज नयन से
चिहुँक दामिनी इतराई !
मन बहका फूली अमराई
नयन बने हिय का दर्पण ।
ललित कलित बदली जब छाई
अयन क्या करूँ मैं अर्पण ।
घुमा केश की गुंथित वेणी
लहर पावनी मुस्काई ।
अम्बर बरसा आज नयन से
चिहुँक दामिनी इतराई !
गहन जलद छा गये चँहुओर
बिखर गयी हो जैसे अलकें ।
पात लजीले यूँ लहराये
बहक गयीं जैसे पलकें ।
सरिता सागर तट जा पहुँची
लहरें उमग जा समाई ।
अम्बर बरसा आज नयन से
चिहुँक दामिनी इतराई !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सही चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द विन्यास ... दिल में तरंगें उठाते भाव ...
जवाब देंहटाएंसुंदर।
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