गीतिका
शंकाओं के बादल छाए, पर मैं विश्वास जगाऊँगी।
मैं गीत सृजन के गाऊंगी, धरती पर स्वर्ग रचाऊंगी।
माना जयचंद छिपे घर मे, बाहर अरिदल ने घेरा है
भुजबल प्रचंड सेना का है, मैं यह संदेश सुनाऊँगी।
जब राजनीति हिन्दू-मुस्लिम, के सम्बन्धों से खेलेगी
गंगा जमुनी तहजीबों का, जग में परचम फहराऊंगी।
जब हरे और केसरिया में, अपने समाज को बांटोगे,
है एक तिरंगा ध्वज अपना, फहराकर मैं बतलाऊंगी।
माना बाधाएँ बहुत अभी, भारत को ऊंचे उठने में,
फिर भी निश्छल प्रयास की मैं, नदियां निर्बाध बहाऊँगी।
हम शिक्षा ,उन्नति स्वाभिमान, के शिखरों पर भी पहुँचेंगे,
लोगों के मन में स्वाभिमान, विश्वास अटल भर जाऊँगी।
आगे ले जाना पुरखों की थाती ,दायित्व 'निवी' अपना,
सबको हितकारी भारतीय, संस्कृति की राह दिखाऊँगी
..... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
जब हरे और केसरिया में, अपने समाज को बांटोगे,
जवाब देंहटाएंहै एक तिरंगा ध्वज अपना, फहराकर मैं बतलाऊंगी।
सुन्दर।