पैग़ाम
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर लफ्जों का
सुन कर ही शायद ठंड अबोला कर जाए
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपनी यादों का
यादें आ आकर गुच्छा बन समेट लें वीराने में
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर एहसासों का
छुवन से ही चमक जाए चटकीली सी धूप
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपने साथ का
न रहने पर आगोश में भर सहला दें साथ सा
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर मीठे लम्हों का
तुम तक पहुँचा दे #पैग़ाम मेरे जज्बातों का
...... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर लफ्जों का
सुन कर ही शायद ठंड अबोला कर जाए
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपनी यादों का
यादें आ आकर गुच्छा बन समेट लें वीराने में
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर एहसासों का
छुवन से ही चमक जाए चटकीली सी धूप
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपने साथ का
न रहने पर आगोश में भर सहला दें साथ सा
बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर मीठे लम्हों का
तुम तक पहुँचा दे #पैग़ाम मेरे जज्बातों का
...... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को "देश मेरा जान मेरी" (चर्चा अंक - 3588) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भावपूर्ण ,अत्यंत सुंदर रचना ,सादर
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