मंगलवार, 21 जनवरी 2020

पैग़ाम ...

पैग़ाम

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर लफ्जों का
सुन कर ही शायद ठंड अबोला कर जाए

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपनी यादों का
यादें आ आकर गुच्छा बन समेट लें वीराने में

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर एहसासों का
छुवन से ही चमक जाए चटकीली सी धूप

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर अपने साथ का
न रहने पर आगोश में भर सहला दें साथ सा

बुनना चाहती हूँ एक स्वेटर मीठे लम्हों  का
तुम तक पहुँचा दे #पैग़ाम मेरे जज्बातों का
            ...... निवेदिता श्रीवास्तव  'निवी'

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-01-2020) को   "देश मेरा जान मेरी"   (चर्चा अंक - 3588)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. भावपूर्ण ,अत्यंत सुंदर रचना ,सादर

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