बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

क्यों ....... सुनो .......



क्यों  ....... सुनो  ....... 
ये दो शब्द नहीं 
ये सात जन्मों के साथ के 
अनकहे दो द्वार हैं
मेरी क्यों कोई सवाल नही 
तुम्हारी सुनो कोई जवाब नही 
रूठने मनाने जैसा साथ हो 
बताओ न क्या यही साध है  ..... 

चौथ का चाँद पूजती हूँ 
पूर्णमासी का चाँद नही 
जानते हो क्यों  ..... 
ये अधूरापन भी तो 
सज जाता है चांदनी के श्रृंगार से 
मेरी क्यों भी तो पूरित होती है 
तुम्हारे सुनो की पुकार से  .... 

जानती हूँ  .... ये सफर जीवन का 
इतना सहज भी नही  .....  
इसीलिए तो साथ हमारा प्यार है 
कहीं किसी राह में लगी ठोकर 
लड़खड़ाते कदम भी संभल जाएंगे 
थामे एक दूजे के हाथ 
शून्य से क्षितिज पर आ ही जाएंगे  ..... निवेदिता 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर . यह साथ ऐसे ही रहे स्नेहमय ,अक्षुण्ण ..

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  2. बहुत सुन्दर . यह साथ ऐसे ही रहे स्नेहमय ,अक्षुण्ण ..

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  3. बहुत प्यारी और मीठी अभिव्यक्ति ....अन्तिम पंक्ति सम्बन्धों का सार

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  4. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-10-2016) के चर्चा मंच "करवा चौथ की फि‍र राम-राम" {चर्चा अंक- 2502} पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. प्रेम भरी इस पाती और इसके शब्दों का रूहानी असर मन को छू रहा है ...

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  6. चौथ का चाँद पूजती हूँ
    पूर्णमासी का चाँद नही
    जानते हो क्यों .....
    ये अधूरापन भी तो
    सज जाता है चांदनी के श्रृंगार से
    मेरी क्यों भी तो पूरित होती है
    तुम्हारे सुनो की पुकार से ....
    वाह ! बहुत प्यारी रचना ... मंगलकामनाएं

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