लाडलों का प्यार .....
चाहतें भी कैसी कैसी
साँसे लेती रहती हैं
बताओ न अब
बाँटना चाहती हैं
अपने जीवन की
अनबोली सी वजह
अपने लाडलों का प्यार .....
चाहतों में हलचल मची
ये बाँटना तो कभी नहीं है
चाहत है मिले लाडलों को
दुगना प्यार अपरम्पार
हमारा भी और ........ निवेदिता
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2016) के चर्चा मंच "हर्ष का त्यौहार है दीपावली" {चर्चा अंक- 2510} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंदीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
इसी उहापोह में बँट जाना है कतरा-कतरा ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआपको दीप-पर्व की शुभकामनाएँ ।
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंहमने तो सुना था, प्यार बटा 2 होता है दोगुना प्यार.. प्यार गणित के सारे नियमों के खिलाफ होता है.. और गणित ही क्यों प्यार तो जैसे सभी नियमों के खिलाफ होता है, प्यार को कोई नियम बाँध ही नहीं सकता... वैसे हम जैसे लाड़ले तो जहाँ भी मिले वहाँ से क्विंटल भर दुलार संभाल कर रखे रहते हैं, वैसे वक़्त के लिए जब न चाहते हुए भी तनहा होते हैं...
जवाब देंहटाएंशेखर ,
हटाएंलाडलों का प्यार कभी बंट ही नही सकता ..... वो तो जब बच्चे अपनी जिंदगी में व्यवस्थित होते हैं तब माँ की चाहत होती है अपने बच्चों का एक योग्य हमसफ़र वरदान की तरह पा लेने की और उनसे अपने बच्चों का प्यार बांटनें की जो पहले से भी बहुत ज्यादा होकर मिलता है .... सस्नेह !