आँसू और पलकों का
ये कैसा भीगा सा नाता है
एक बिखरने को बेताब
तो दूजा समेटने को बेसब्र
ये बेताबी और ये बेसब्री
ये बिखराव और ये सिमटन
दिल की आती जाती साँसों सी
धड़कन को भी सहला जाती
आँसुओं का दिल लरजता
उनकी अजस्र धारा बुझा न दे
पलकों के चमकते दिए
पलकें थमकती है कहीं
राह थम न जाए और
सूख न जाए नयन सरिता .... निवेदिता
ये कैसा भीगा सा नाता है
एक बिखरने को बेताब
तो दूजा समेटने को बेसब्र
ये बेताबी और ये बेसब्री
ये बिखराव और ये सिमटन
दिल की आती जाती साँसों सी
धड़कन को भी सहला जाती
आँसुओं का दिल लरजता
उनकी अजस्र धारा बुझा न दे
पलकों के चमकते दिए
पलकें थमकती है कहीं
राह थम न जाए और
सूख न जाए नयन सरिता .... निवेदिता
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जवाब देंहटाएं....��
जवाब देंहटाएंभावनात्मक कविता , शब्दों का अच्छा प्रयोग
जवाब देंहटाएंयह नयन सरिता खुशियों के मोती संग लाए तो क्या कहने...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना " पांच लिंकों का आनन्द " पर कल बुधवार 16 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी . http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा .
जवाब देंहटाएं.... आभार !
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुखों की परछाई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएं.... आभार !
हटाएंBahut sundar
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