सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

एक सुराख ......



बेसबब
यूँ ही सी
एक चाहत
ने सरगोशी की
आज
अपनी सारी
उलझनों
या कह लूँ
दुश्वारियों को
समेट कर
सहेज लेती हूँ
अपने ही
पोशाक की
दराजों (जेबों) में
बस तू इतनी ही
रहमत बरसाना
उन दराजों में
अपनी नियामत का
एक सुराख बना देना  ..... निवेदिता 

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