वो दूर क्षितिज पर
एक उजला साया सा दिखा
अचंभित है मन बावरा
वो दूर उड़ता उजला लम्हा
रेशा - रेशा बादल है
या कहीं उठती - गिरती
समुद्री लहरों की
नमकीन यादों का
ज्वार है छाया
सहम जाते लड़खड़ाते
कदम खोजते हैं
अनजानी राहों की
धूमिल सी पगडंडी
वहीं कहीं ममता की छाँव
झलक दिखला जाती
अरे ! वो उजला साया तो है
माँ , बस तुम्हारे ही
दुलार बरसाते आँचल का साया
बहुत दिनों से जागी मेरी आँखें
अब तो बस थक गयीं हैं
सोना चाहती हैं
कभी न खुलने वाली
नींद में ……
काश ! कहीं मिल जाए
उन सुरीली लोरी की छाँव …… निवेदिता
मन को छू गयी रचना .... माँ के आँचल तले मिलने वाली नींद और सुकून मन सदा ही तलाशता रहेगा ... :(
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंवाह ....बेहतरीन
जवाब देंहटाएंमाँ के आचल तले !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता !
सबसे नर्म बिछावन - माँ की गोद
जवाब देंहटाएंसबसे सुन्दर गीत - माँ की लोरी
मानव रूप में इश्वर - माँ
उतनी ही सुन्दर रचना!!
खुबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी है ये खूबसूरत सी रचना...जाने कितना अनकहा दर्द समेट लिया है आखिरी की पंक्तियों में...
जवाब देंहटाएंउस गोद की ही तो तलाश रहती है सभी को ... मिल जाए तो चिर-सुकून मिल जाता है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...मन को छू जाती पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंमाँ अतुलनीया है । आपकी रचना भी ।
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना है!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना , मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंbahut sunder shabdon se sajaya hai man me maan k liye uthti yadon ko.
जवाब देंहटाएंman dravit ho utha.
aabhar mere blog par aane k liye.