परिवर्तन प्रकृति का नियम है ,पर हम सब हैं कि उसी घिसी - पिटी लकीर को हर वर्ष तरोताज़ा करते रहतें हैं । अब देखिये हर वर्ष हम रावण का पुतला बनाते हैं और उसको जला कर विजयादशमी मनाने की परिपाटी का पालन कर लेते हैं । इस वर्ष मुझे लगता है कि रावण भी हर बार जलने के लिए बन - बन कर ऊब गया होगा , तो चलिए इस वर्ष रावण के बारे में सोचने के पहले अपने बारे में भी सोचते हैं कि हम अपने बारे में सोचते हैं कि हम स्वयं को इस योग्य बना लें कि हम रावण को ,उसकी सभी बुराइयों के साथ जला सकें । अब अग्नि से अग्नि को तो हम जला नहीं सकते , उसके लिए तो हमें पानी का ही प्रयोग करना होगा । बड़ी आसान सी बात है कि अब इस वर्ष हम रावण की बुराइयों की दाह से बचाने के लिए कम से कम कुछ तो अच्छी सोच को अपने व्यक्तित्व का अंग बना लें । बहुत ही आसान से छोटे - छोटे बदलाव लाने होंगे ........ सबसे पहले तो प्रतिक्रिया देने में शीघ्रता न दिखाएँ । प्रत्येक व्यक्ति में कुछ तो विवेक होता ही है और वो अपने विवेक के अनुसार ही अपनी सोच बनाता है । अगर उसकी सोच हमें न पसंद आ , हो तब भी उस के विवेक को सम्मान देते हुए अपनी अरुचि दिखाएँ ....... जो सम्मान स्वयम के लिए चाहते हैं वही दूसरे को भी दें ....... दूसरों की विवशता को अपनी शक्ति अथवा सामर्थ्य न समझें ........ ऐसी ही कुछ छोटी - छोटी बातों से शुरुआत तो की ही जा सकती है , इसके आगे तो अपने आप को हम खुद ही जानते हैं कि कहाँ क्या सुधार लाया जा सकता है ....... पर हाँ ! एक बात जो अनिवार्य रूप से करनी चाहिए ,ऐसा मुझे तो लगता ही है , परिणाम की प्रवाह किये बिना ही गलत का विरोध और सप्रयास दमन करना चाहिए ........ अगर हम स्वयं को ईमानदारी से रावण को जलाने लायक बना लें तो यकीन मानिए अगले वर्ष हमको प्रतीकात्मक रूप से भी रावण को जलाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी .........
- निवेदिता
- निवेदिता
बहुत ही अच्छी बात कही है आपने....
जवाब देंहटाएंविजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऔर हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
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बहुत ही सुन्दर
जवाब देंहटाएंsundar prastuti ..vijayadashmi ki bahut bahut shubhakamnaye ..
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट आज के (१३ अक्टूबर, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - बुरा भला है - भला बुरा है - क्या कलयुग का यह खेल नया है ? पर प्रस्तुत की जा रही है | आपको विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनायें और सहर्ष बधाई ।
जवाब देंहटाएंबुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
kash!! aisa hi ho.........
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ,,,
जवाब देंहटाएंसहमत ... पहले अपने अंदर झाँक लें ... खुद को ईमानदार बनाएँ ... राम की एक भि आदत आ जाए तो फिर रावन जलाएं ...
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