शब्द यूँ ही भटकते - अटकते रहे
कभी ख़्वाबों तो कभी ख़यालों में
इक नामालूम सी श्वांस सरीखी
मासूम सी पनाह की तलाश में
बेपनाह आवारगी का दामन थाम
अजीब सी चाहत पहचानी राह में
खामोशी से उभर अपना ख़्वाब बनी
मेरी चाहत के शब्दों को , काश
मिल जायें बस स्वर तुम्हारे ........
-- निवेदिता
शब्द को शब्द मिल गए .....बन गई एक रचना प्यारी सी
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्यारी रचना ,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंbahut badiya ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव की अभिव्यक्ति शब्द को अर्थ देते
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...प्यारे से एहसास
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंख़ामोशी को शब्दों की जरूरत है !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज शनिवार (24-08-2013) को मुद्रा हुई रसातली, भोगें नरक करोड़-चर्चा मंच 1347 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत - बहुत धन्यवाद आपका .......... सादर !!!
हटाएंकल 25/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत - बहुत धन्यवाद ..........शुभकामनाएं !!!
हटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर से एहसास.....
जवाब देंहटाएंचाहत के लफ्ज़ सफ़हे पर उतर आये...कैसी सुन्दर रचना है देखो...
जवाब देंहटाएंअब तो मुस्कुरा दो :-)
सस्नेह
अनु
छोटी सी, प्यारी सी रचना
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति...... .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंkhubsurat rachna :)
जवाब देंहटाएंमासूम सी चाहत ... भावमय रचना ...
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