आँखे तुम्हारी
पानीदार बड़ी
और मानसून आ गया !
उसने कहा
दिल तुम्हारा
शीशे सा पारदर्शी
और शीशे में बाल आ गया !
उसने कहा
साथ तुम्हारे
जन्नत हैं मेरी
और साथ ख़्वाब बन गये !
उसने कहा
साँसे तुम्हारी
ज़िन्दगी मेरी
और साँसे नि:शेष हो गईं !
उसने कहा
रूह तुम्हारी
अमानत है मेरी
और अमानत में खयानत हो गयी !
-निवेदिता
उसने कहा
जवाब देंहटाएंसाँसे तुम्हारी
ज़िन्दगी मेरी
और साँसे नि:शेष हो गईं !
क्या बात...बहुत शानदार..
मैने कहा
कविता तुम्हारी, टिप्पणी मेरी,
और पोस्ट हिट हो गयी :)
मैंने कहा
हटाएंदीदी मेरी ,
बातें तुम्हारी
मिठास से भी मीठी हो गईं :)
लाजवाब रचना | आभार
जवाब देंहटाएंजीवन का एक और दृष्टि कोण ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंलाजवाब दृष्टि कोण .
जवाब देंहटाएंआभार आपका :)
जवाब देंहटाएंकाबिले तारीफ शानदार,उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
अमानत में खयानत....???
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!!
सस्नेह
अनु
आपकी यह रचना कल शनिवार (08-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंआभार आपका :)
हटाएंउसने यह सब पूरे मन से कहा था न !
जवाब देंहटाएंइस एहसास और अंदाज़ के क्या कहने
जवाब देंहटाएंये सब उसने कहा , और आप बात सरेआम उजागर कर दी , इन सबके खिलाफ कड़े कानून आ गये है !
जवाब देंहटाएं:-) वैसे बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है .
वाह, चाहें और राहें ऐसी मधुर बनी रहें..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... गहरी बात कह दी ...
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