आज खामोशी को ,
बेजुबान कर दिया
इसलिए नहीं कि ,
कहने को कुछ नहीं
सुनने को भी बहुत है
और सुनाने को भी !
बस इस पल शायद
सुनने और समझने
की तुम्हे चाह नहीं
जानती हूँ ऐसा क्यों
सुनना भी तो होगा
एक तरह का स्वीकार !
कुछ कदमों का जुड़ना
जैसे तटस्थ श्वांसों का
निर्लिप्त सा आते जाना
श्वांस बंध टूटने पर
नि:श्वांस भर
बस बेजुबान हो जाना !
-निवेदिता
शब्द रहे न स्थिर उस पल, अपनी बोल गये,
जवाब देंहटाएंसाधा जिनको यत्नपूर्ण, अवसर पा डोल गये,
तटबन्धों से आस यही, लहरों को समझायें,
बन्ध बहे निर्बन्ध और अन्तरतम खोल गये।
कभी कभी बेजुबान होना पढता है ... हर किसी बात की अहमियत होती है ...
जवाब देंहटाएंgahan peeda man shant ho kar hii sahta hai ....!!
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti ...
बहुत ही सुंदर एवं सार्थक गहन भाव अभिव्यक्ति...
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