रविवार, 28 अप्रैल 2013

उसने कहा ........ ( 2 )



उसने कहा 
आँखें तुम्हारी 
सीप सी 
और मैंने 
मोती बरसा दिए !


उसने कहा 
आँखों में तुम्हारी 
आँसू क्यों ....
आँखों से लुढ़के 
और पानी बन गये !


उसने कहा 
आँखें तुम्हारी 
गोमुख सी 
लब लगाये 
और पावन हो गये !


उसने कहा 
आँखें तुम्हारी 
ज़िन्दगी मेरी 
साँसे मेरी 
बस  बहक गईं !


उसने कहा 
आँखें तुम्हारी 
प्यासी बड़ी 
नजरें मिलीं 
और भर गईं !
              -निवेदिता 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्यारी कविता है निवेदिता...
    प्यार सी मीठी और आंसुओं सी नमकीन भी...

    सस्नेह
    अनु

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  2. अरे वाह !
    इतना सबकुछ करतीं हैं आँखें, फिर तो देखनी पड़ेंगीं इनको :)

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  3. हलचल की लहरों में सम्मिलित करने के लिए शुक्रिया :)

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  4. बहुत मीठी सी कविता, पढ़कर मन आनन्दमय हो गया।

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  5. खूबसूरत कविता | गज़ब

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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  6. Waaaah...So Beautiful...sabse pyaara sa pahla wala hi laga :
    उसने कहा
    आँखें तुम्हारी
    सीप सी
    और मैंने
    मोती बरसा दिए ! :)

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  7. कहना और व्यक्त करना अत्यंत जरूरी है। अगर किसी बात की प्रशंसा हो रही है तो इसमें और निखार आता है। बस आपकी कविता में आंखों के माध्यम से यही हो रहा है। एक-दूसरे के प्रति भरपूर प्रेम ओर समर्पण की अभिव्यक्ति कविता में है।

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  8. आँखों का ही तो खेल है सब जगह ... बिना शब्द भी कहती हैं बहुत कुछ ...

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  9. आँखों के भाव ही कुछ ऐसे होते हैं
    सुन्दर भावपूर्ण रचना
    साभार!

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