ये ऐसी विशिष्ट आँखें हैं जिनको एक व्यक्तित्व नहीं सिर्फ उसका स्त्री शरीर ही दिखाई देता है ....
आँखें
कितनी बड़ी दुआ हैं !
किसी अंधेरी राह के
राही ने हसरत छलकाई
सच ऐसा है क्या ...
सोते - जागते हर पल
स्वप्नदर्शी बना
कितनी चुभन दे
दिखा कर राह
रौशन अँधेरे की
गहराइयाँ
या
श्वांस - प्रश्वांस की
राह छलती
दम तोड़ते बोलों से
अबोला करती
देखे - अनदेखे सपनों पर
अश्रुधार बरसा
विप्लव का तांडव बन
कसक बन जाती ....
कैसी है ये दुआ
सिर्फ निगाहें डाल
कर जाती अवांछनीय
और हाँ !
घट भी जाता है अघटनीय
-निवेदिता
गहरी बात .....
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना.
सस्नेह
अनु
आँखें नियामत हैं....पर कभी कभी इन्हीं से दरिंदगी भी छलकती है ... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post तुम अनन्त
आभार आपका !!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका !!!
जवाब देंहटाएंगहन भाव निवेदिता जी ...
जवाब देंहटाएंसभी को अपना योगदान इस समस्या के उन्मूलन के लिये करना चाहिये. सामयिक प्रस्तुति.
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