एक तारा टूट गया बस यूँ लगा जैसे आसमां की चांदनी भरी आँखों से एक बूँद आंसू की छलक ही गयी बस एक सूखा सा पत्ता ही तो बिखरा है शाखा से जैसे कोई रिश्ता बिखर गया हो कई जन्मों का दम तोड़ गये कई अबोले शब्द तुम्हारे खामोश जज्बातों की आंधी में बदल गये रिश्तों की अनकही दास्तां -निवेदिता
मेरे अपने सभी नवोदित, वरिष्ठ,और मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों तथा देश वाशियों को सुप्रभात कहते हुये प्राची की सुन्दर छटा से अभिभूत यह गीत निवेदित करता हूँ ! ............. साहित्यिक सुप्रभात की सुन्दरतम संधि काल की भगोरिया बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकर्ण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!.............
एक बार चल कर तो आओ कन्हैयाँ यमुना के किनारे ! देखेंगे हम भी सजती मुरलिया ओंठ में तुम्हारे ! प्राण भेदी चितवन एक नज़र हम पर भी डारो, लहरों में बनाये रेत के घरौंदे उबारो, मीरा संग राधा आज रास तुम नाचो साथ में हमारे ! एक बार चल कर तो आओ कन्हैयाँ यमुना के किनारे ! देखेंगे हम भी सजती मुरलिया ओंठ में तुम्हारे ! यमुना की लहरी में झांके पूनम की चंदा, तुम भी निहारो कमल मुख कलियाँ डारो न फंदा, आँचल का फागुन पलाशों का फींचा गलियाँ निहारे ! एक बार चल कर तो आओ कन्हैयाँ यमुना के किनारे ! देखेंगे हम भी सजती मुरलिया ओंठ में तुम्हारे ! डारे कदम की डारी हमने बाहों के झूले, प्राणों में मेहदी अमलतास साँस फूले, खेलेंगे हम भी गोकुल की होली प्रीत के सहारे ! एक बार चल कर तो आओ कन्हैयाँ यमुना के किनारे ! देखेंगे हम भी सजती मुरलिया ओंठ में तुम्हारे !
भोलानाथ डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर ,जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत संपर्क -08989139763
सबकुछ कहती ये...अनकही दास्तां .
जवाब देंहटाएंसाधू-साधू
जवाब देंहटाएंवाह ...खूब कही
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
जवाब देंहटाएंखामोश जज्बातों की आंधी कितना कुछ बदल जाती है , रिश्ते भी तो !
जवाब देंहटाएंसुन्दर जज्बात
जवाब देंहटाएंकितनी बातें,
जवाब देंहटाएंहृदय छोड़ बढ़ती जातीं,
कह देते तुम,
कुछ तो मन से कह देते तुम।
मेरे अपने सभी नवोदित, वरिष्ठ,और मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों तथा देश वाशियों को सुप्रभात कहते हुये प्राची की सुन्दर छटा से अभिभूत यह गीत निवेदित करता हूँ ! .............
जवाब देंहटाएंसाहित्यिक सुप्रभात की सुन्दरतम संधि काल की भगोरिया बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !
और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकर्ण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!.............
एक बार चल कर
तो आओ कन्हैयाँ
यमुना के किनारे !
देखेंगे हम भी
सजती मुरलिया
ओंठ में तुम्हारे !
प्राण भेदी चितवन
एक नज़र
हम पर भी डारो,
लहरों में
बनाये
रेत के घरौंदे उबारो,
मीरा संग राधा
आज रास तुम नाचो
साथ में हमारे !
एक बार चल कर
तो आओ कन्हैयाँ
यमुना के किनारे !
देखेंगे हम भी
सजती मुरलिया
ओंठ में तुम्हारे !
यमुना की
लहरी में झांके
पूनम की चंदा,
तुम भी निहारो
कमल मुख कलियाँ
डारो न फंदा,
आँचल का फागुन
पलाशों का फींचा
गलियाँ निहारे !
एक बार चल कर
तो आओ कन्हैयाँ
यमुना के किनारे !
देखेंगे हम भी
सजती मुरलिया
ओंठ में तुम्हारे !
डारे कदम की
डारी हमने
बाहों के झूले,
प्राणों में मेहदी
अमलतास
साँस फूले,
खेलेंगे हम भी
गोकुल की होली
प्रीत के सहारे !
एक बार चल कर
तो आओ कन्हैयाँ
यमुना के किनारे !
देखेंगे हम भी
सजती मुरलिया
ओंठ में तुम्हारे !
भोलानाथ
डॉ,राधा कृष्णन स्कूल के बगल में
अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
,जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
संपर्क -08989139763
खामोशी अक्सर बिन बोले ही अपना कम कर जाती है ... फिर वो रिश्तों की डोर टूटना हो या जुडना ...
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाव्यक्ति ...
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंतुम्हारे खामोश
जवाब देंहटाएंजज्बातों की आंधी में
बदल गये रिश्तों की
अनकही दास्तां
संवाद से ही संवेदना उपजाति है ....खामोश रिश्ते दम तोड़ देते हैं ....सुंदर अभिव्यक्ति ...