एक कदम आगे चलो न ...........
ये अनुरोध था या आदेश समझ ही नही पायी ,बस इन शब्दों को ही गुनती रह गयी और मुदित हो उठी :)
दरअसल ये और किसी ने नहीं अपितु हमारे बड़े बेटे "अनिमेष " ने दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर
कहे थे । जब उसने भीड़ के एक बड़े से रेले को आते और मेरी ख़रामा - ख़रामा अपने में मस्त चहलकदमी
को देखा , तो चिंतित सा हो कर तुरंत मेरी बाँह थामी और बोला ,"मुझसे एक कदम आगे ,मेरे सामने चलो
मैं तुमको देख सकूँ ऐसे ।" उस एक छोटे से पल में लगा जैसे मेरा छोटा सा बच्चा कितना बड़ा हो गया है
और सच कहूँ तो लगा हमारे पापा अपनी सुरक्षा की छाँव में सहेजने को रूप बदल कर वापस आ गये है !
पूरी यात्रा में ऐसे कई लम्हे आये । ऊपर की शायिका पर मुझे चढ़ाने के लिये विश्वास से भरा हुआ अपना कंधा आगे कर के मेरा हाथ थाम लिया था उसने और मै नि:संशय हो ऊपर जा कर सो गयी ।
ये एक ऐसा लम्हा था ,जिसकी राह सम्भवत: हर माँ देखती है । घर से निकलने के पहले अनिमेष मेरी गोद में दुबका हुआ एक नन्हा सा शिशु ही लग रहा था । मैं मन ही मन सोच रही थी कि मेरा बच्चा बड़ा कब होगा । अभी तो घर के पास ही कानपुर में है , कोई भी जरूरत पड़ने पर हम तुरंत उसके पास पहुँच जाते थे ।
पर अब तो ज़िन्दगी की राहें घर से कुछ अलग और अनजानी राहों पर ले जायेंगी और वहाँ हर दिन उस को नयी चुनौतियों का सामना करना होगा । उन परिस्थितियों में वो क्या करेगा ,यही सोचती अशांत हो जाती थी । वैसे भी बच्चे कितने भी बड़े हो जाएँ माँ को वो बहुत छोटे ही लगते हैं ।
ईश्वर भी सृजन करते हैं एक माँ की तरह ,सम्भवत: इसीलिये उन्होंने ऐसी परिस्थिति ला कर मेरे डावाँडोल
होते मन को इतनी सुखद अनुभूति देते हुए दृढ कर दिया । लगता है ज़िन्दगी की संशय भरी प्रखर ताप भरी दुपहरी पर स्नेहिल छाँव की बदली लहरा रही हो और मीठे - मीठे लम्हे ओस की तरह मेरे कमलमन को अभिसिंचित कर रहे हों !!!
ये अनुरोध था या आदेश समझ ही नही पायी ,बस इन शब्दों को ही गुनती रह गयी और मुदित हो उठी :)
दरअसल ये और किसी ने नहीं अपितु हमारे बड़े बेटे "अनिमेष " ने दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर
कहे थे । जब उसने भीड़ के एक बड़े से रेले को आते और मेरी ख़रामा - ख़रामा अपने में मस्त चहलकदमी
को देखा , तो चिंतित सा हो कर तुरंत मेरी बाँह थामी और बोला ,"मुझसे एक कदम आगे ,मेरे सामने चलो
मैं तुमको देख सकूँ ऐसे ।" उस एक छोटे से पल में लगा जैसे मेरा छोटा सा बच्चा कितना बड़ा हो गया है
और सच कहूँ तो लगा हमारे पापा अपनी सुरक्षा की छाँव में सहेजने को रूप बदल कर वापस आ गये है !
पूरी यात्रा में ऐसे कई लम्हे आये । ऊपर की शायिका पर मुझे चढ़ाने के लिये विश्वास से भरा हुआ अपना कंधा आगे कर के मेरा हाथ थाम लिया था उसने और मै नि:संशय हो ऊपर जा कर सो गयी ।
ये एक ऐसा लम्हा था ,जिसकी राह सम्भवत: हर माँ देखती है । घर से निकलने के पहले अनिमेष मेरी गोद में दुबका हुआ एक नन्हा सा शिशु ही लग रहा था । मैं मन ही मन सोच रही थी कि मेरा बच्चा बड़ा कब होगा । अभी तो घर के पास ही कानपुर में है , कोई भी जरूरत पड़ने पर हम तुरंत उसके पास पहुँच जाते थे ।
पर अब तो ज़िन्दगी की राहें घर से कुछ अलग और अनजानी राहों पर ले जायेंगी और वहाँ हर दिन उस को नयी चुनौतियों का सामना करना होगा । उन परिस्थितियों में वो क्या करेगा ,यही सोचती अशांत हो जाती थी । वैसे भी बच्चे कितने भी बड़े हो जाएँ माँ को वो बहुत छोटे ही लगते हैं ।
ईश्वर भी सृजन करते हैं एक माँ की तरह ,सम्भवत: इसीलिये उन्होंने ऐसी परिस्थिति ला कर मेरे डावाँडोल
होते मन को इतनी सुखद अनुभूति देते हुए दृढ कर दिया । लगता है ज़िन्दगी की संशय भरी प्रखर ताप भरी दुपहरी पर स्नेहिल छाँव की बदली लहरा रही हो और मीठे - मीठे लम्हे ओस की तरह मेरे कमलमन को अभिसिंचित कर रहे हों !!!
बच्चे हमारा ही प्रतिबिम्ब होते हैं, उन्हें देखकर उनके व्यव्हार और आदतों से हम पूरे परिवार को जान समझ सकते हैं, आपके दिए संस्कार हैं बेटे में...आपने बोया सींचा संवारा है इसे. अब देखिये कितने सुन्दर फूलों से सुशोभित हो महक उठा है खुशबू से...महाशिवरात्रि की शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!
कहाँ कुछ बदला है, पहले भी आँखों के सामने चाहते हैं बच्चे, और आज भी।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख | बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबेटे के लिए माँ से प्यारा कोई नहीं ...
जवाब देंहटाएंजिन्हें हम बच्चे कहते हैं, दरअसल वे बहुत ‘बड़े‘ होते हैं। हम उनका जितना ध्यान रखते हैं, कई बार उससे कहीं अधिक वे हमारा ध्यान रखते हैं।
जवाब देंहटाएंकोमल भाव भरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें -
हर हर बम बम
सुंदर रचना, कोमल भाव
जवाब देंहटाएंकोमल भाव सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
महा शिव रात्रि मंगल मय हो
जवाब देंहटाएंबच्चे कब बडे हो जाते हैं पता ही नही चलता ………बहुत सुन्दर ... महाशिवरात्रि की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंचर्चा - मंच में सम्मिलित करने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने .....माँ और बेटे का सम्बन्ध ही ऐसा है ....एक अटूट विश्वास से भरा ....वो जहाँ भी जाए आपके संस्कार और संबल साथ ही होंगे जो जीवन में सदा उसकी रक्षा करेंगे .....
जवाब देंहटाएंmaa-bete ka sambandh sabse anmol...:)
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
अब क्या कहें ...आपने तो हमारे ही मन के भाव लिख दिए हैं :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण। बच्चे के सुन्दर भविष्य के लिये मंगलकामनायें।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशवंत ....शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंमाँ की बच्चों के प्रति कोमल भावनाओं का सुन्दर चित्रण ....
जवाब देंहटाएंमैं तो अपने बच्चों को देख सोचती हूँ कब मेरे बच्चे कब बड़े होंगें .....
सार्थक और सुंदर .
जवाब देंहटाएंआप भी पधारो स्वागत है ...
http://pankajkrsah.blogspot.com
दो तीन साल पहले पापा-मम्मी के साथ बहार खाना खाने गया था, खाने के बाद वेटर बिल मेरे पास दे गया. इतनी ख़ुशी हुई थी उस वक़्त जिसे बता नहीं सकता हूँ.
जवाब देंहटाएंयह आपके इस लेख का एक दूसरा पक्ष है. :-)