नाज़ुक से ख़्वाब सजा
मीठी सपनीली नींद बुलांऊ !
कांच की खनक ला यादों में
काँटों की तीखी चुभन भुलाऊँ !
सात सुरों की सरगम बन
मन वीणा में बरस-दरस जाऊँ !
चंद लम्हों को सही
जीवन में रच-बस जाऊँ !
नित घटती जाती साँसों से
हसीन पल चुरा जीना सीख जाऊँ !
-निवेदिता
बहुत सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंप्यारी सी रचना...
अनु
SUNDAR KAVITA...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
सात सुरों के सरगम से,बनता सुन्दर गीत,
जवाब देंहटाएंमन के तार बजने लगे,याद करे मन मीत,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
bahut sundar likha hai apne...wah
जवाब देंहटाएंचंद लम्हों को सही
जवाब देंहटाएंजीवन में रच-बस जाऊँ !
इसके आगे कोई क्या कहे.
आभार
बहुत सुन्दर प्यारी सी रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ... प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंऐसा ही हो :-)
जवाब देंहटाएंसुरमयी लेखनी ...
जवाब देंहटाएंरंग रसों में जीना हमने सीख लिया है..
जवाब देंहटाएंचाहतों के फूल शब्द बनकर खिल गए हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना...
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