शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

सात सुरों की सरगम बन .....



इन्द्रधनुषी से रंगों संग 
हिंडोले की मैं पेंग बन जाऊँ ! 
नाज़ुक से ख़्वाब सजा 
मीठी सपनीली नींद बुलांऊ !
कांच की खनक ला यादों में 
काँटों की तीखी चुभन भुलाऊँ !
सात सुरों की सरगम बन  
मन वीणा में बरस-दरस जाऊँ !
चंद लम्हों को सही 
जीवन में रच-बस जाऊँ !
नित घटती जाती साँसों से 
हसीन पल चुरा जीना सीख जाऊँ !
                                    -निवेदिता 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर.......
    प्यारी सी रचना...

    अनु

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  2. सात सुरों के सरगम से,बनता सुन्दर गीत,
    मन के तार बजने लगे,याद करे मन मीत,,,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  3. चंद लम्हों को सही
    जीवन में रच-बस जाऊँ !

    इसके आगे कोई क्या कहे.
    आभार

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  4. बहुत सुन्दर प्यारी सी रचना..

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  5. बहुत बढिया ... प्रस्‍तुति।

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  6. रंग रसों में जीना हमने सीख लिया है..

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  7. चाहतों के फूल शब्द बनकर खिल गए हैं।

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