शनिवार, 20 मई 2023

सुनो न ...


जीवन हर पल बहता जाता 

गुनता रहता खुद को 

अलबेली नदी सरीखा

पर सुनो न ...

तटबंधों की पुकार भूल जाती हूँ!


नदी सी बनती जा रही हूँ

बाढ़ भी ले कर आती हूँ 

सूखती भी चली जाती हूँ

पर सुनो न ...

सागर तक जाना भूल जाती हूँ!


यादों का भँवर भी आता है

सपनों का बवंडर भी सताता है

पर सुनो न ...

अस्तित्व की गुल्लक भूल जाती हूँ!


कुछ किनारे तक आ कर 

तो कुछ मंझधार डूब जाते हैं

सबको पार उतारते उतारते

पर सुनो न ...

खुद को तारना भूल जाती हूँ!

निवेदिता श्रीवास्तव निवी 

लखनऊ

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