शनिवार, 3 जून 2023

विदाई : एक ख़याल भटका सा

 बिदाई शब्द से ही दो लम्हे अनायास ही दस्तक देने लगते हैं ... एक तो बेटी की विदाई और दूसरी इस दुनिया से, परन्तु जब चित्त सुस्थिर हो कर मनन करता है तब तो न जाने कितने पल याद आने लगते हैं जिनमें किसी न किसी व्यक्ति, सम्बंध अथवा स्थान से स्वयं को अलग होते पाते हैं। कभी माँ के गर्भ में आने से पहले पूर्व जन्म के सम्बन्धियों से विदाई तो कभी हमसे भी अधिक हमको जाननेवाली माँ के गर्भ से, तो कभी घर से निकल कर माता पिता की उँगली थामे स्कूल को जाते हुए हम होते हैं वहीं कभी ज़िन्दगी की आँखों में आँखें डालने की तैयारी में माता पिता के थामे रहने वाले हाथों से पकड़ की विदाई ... घर, शहर, पितृ सदन से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय के लिए अथवा जीवन से ऐसे न जाने कितने पल होते हैं विदाई के, जो हम को एक से विलग कर के दूसरे स्थान पर ले जाते हैं।


विदा के पल बेहद पीड़ा भरे भी होते हैं, तब भी कभी-कभी मन बावरा हो कर इसी की चाहत करने लगता है। माया मोह के बन्धन में जकड़ा हुआ मन जैसे ही दुनियादारी की तन्द्रा से जाग्रत होता है, इन नश्वर बन्धनों के सत्य के निकट पहुँचने लगता है, वह इन सब से विदा होने की चाहत में जल बिन मीन सा छटपटा उठता है और चाहता है इन सब से विदाई!

विदाई के बारे में मेरी एक बहुत ही छोटी सी चाहत है कि इस दुनिया से विदा होते समय ही, सभी के दिल दिमाग से भी मेरी यादों की विदाई हो जाये ... यहाँ के नाते, रिश्ते, कर्म सब से मुक्त हो जाऊँ। आत्मा को मोक्ष मिलेगा या नहीं, यह नहीं जानती बस इतनी सी चाहत है कि यहाँ का हिसाब किताब यहीं निबट जाए और यदि नया जन्म होता है तो कोरी स्लेट सा हो ... किसी के, किसी कर्म की उधारी चुकाने / वसूलने के लिए नहीं।

भोलेनाथ! मेरी इस चाहत को पूरा करने की जिम्मेदारी तुम्हारी🥰
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ

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