एक नन्हा सा कतरा ......
हाँ ! हूँ मैं
एक नन्हा सा कतरा
एक बहुत ही नन्ही सी बूँद
ये दरिया मेरा क्या कर पायेगा
मैं बच गयी तब भी बूँद रहूंगी
पर हाँ ! मिट गयी न
तो ......
तो क्या ...
दरिया बन उमग जाऊँगी
शायद ......
हाँ ! शायद तब .....
मेरा मिटना ही होगा विस्तार मेरा ........ निवेदिता
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - क्रिसमस डे और प्रकाश उत्सव पर्व की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएँ में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार !!!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-12-2017) को "सर्दी की रात" (चर्चा अंक-2830) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !!!
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसच है जो भी संसार में है वो रहता है किसी न किसी रूप में ... द्रव्य मिटता नहीं ...
बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंकिसी मे समा के अपने अस्तित्व को विस्तार देने का सुख ही कुछ और होता है...।
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