माँ कदमों में ठहराव है देती
पिता मन को नई उड़ान देते
पिता मन को नई उड़ान देते
माँ पथरीली रह में दूब बनती
पिता से होकर धूप है थमती
पिता से होकर धूप है थमती
माँ पहली आहट से हैं जानती
पिता की धड़कन आहट बनती
पिता की धड़कन आहट बनती
ये ठहराव ,ये उड़ान क्यों अटकती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
अब न तो दूब है ,न ही धूप का साया
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
न ही कोई ओर है न ही कोई छोर
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता
अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंआभार !!!
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (25-12-2017) को "क्रिसमस का त्यौहार" (चर्चा अंक-2828) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार !!!
हटाएंआभार !!!
जवाब देंहटाएंमाँ कदमों में ठहराव है देती
जवाब देंहटाएंपिता मन को नई उड़ान देते
अनुपम सृजन .....
माँ और पिता ... दोनों ही जीवन के मजबूत धागे को बुनते हैं बच्चों के ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना है ...
दिनांक 26/12/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंमाँ कदमों में ठहराव है देती
जवाब देंहटाएंपिता मन को नई उड़ान देते
....लाजवाब रचना है !
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर....बदलाव:)
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