आज मेरी पलकों के तले
ये जो मद्धिम सी नमी है
तुम्हारे सपनों की किरचें
खुली आँखों में खनकती हैं
शायद इन चमकते रंगों से
तुमने दोस्ती कर ली है
पर इन रंगों की ये चमक
मेरी आँखों में बसती है
जब भी मेरी आँखों में
यादों की नमी छलकती है
बावरा मन सोचता है
हाँ ! अब यहीं कहीं तो
इन्द्रधनुष खिलने को है ......... निवेदिता
नमी और प्रकाश, अब इन्द्रधनुष खिल ही जाये।
जवाब देंहटाएंइंद्रधनुष की रचना करती सुंदर कविता ।
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