गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

शीर्ष विहीन

सोचती हूँ 
आज 
उन शब्दों को 
स्वर दे दूँ 
जो यूँ ही 
मौन हो 
दम तोड़ गए
और  
अजनबी से 
दफ़न हो 
सज रहे है 
एक 
शोख मज़ार सरीखे   
एहसासों के  दलदल में  … निवेदिता 

6 टिप्‍पणियां:

  1. ये शब्द ज्यादा देर मौन नही रह सकते, पा ही लेते हैं अहसासों के स्वर … सुन्दर रचना

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  2. शब्दों को कागज़ और स्वर की ही जरूरत होती है ...

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  3. स्वर मिलने पर शब्दों को नई जान और पहचान मिल जाती है .

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  4. प्रभावशाली प्रस्तुति
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है

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