सोचती हूँ
आज
उन शब्दों को
स्वर दे दूँ
जो यूँ ही
मौन हो
दम तोड़ गए
और
अजनबी से
दफ़न हो
सज रहे है
एक
शोख मज़ार सरीखे
एहसासों के दलदल में … निवेदिता
आज
उन शब्दों को
स्वर दे दूँ
जो यूँ ही
मौन हो
दम तोड़ गए
और
अजनबी से
दफ़न हो
सज रहे है
एक
शोख मज़ार सरीखे
एहसासों के दलदल में … निवेदिता
ये शब्द ज्यादा देर मौन नही रह सकते, पा ही लेते हैं अहसासों के स्वर … सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका !!!
जवाब देंहटाएंशब्दों को कागज़ और स्वर की ही जरूरत होती है ...
जवाब देंहटाएंस्वर मिलने पर शब्दों को नई जान और पहचान मिल जाती है .
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार कविता।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है