कलश :
कलश के विशिष्ट आकार के कारण उसके अंदर रिक्त स्थान में एक विशिष्ट सूक्ष्म नाद होता है । इस सूक्ष्म नाद के कम्पन से ब्रम्हांड का शिव तत्व कलश की तरफ आकृष्ट होता है ।
समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था । इसलिए एक मान्यता ये भी है कि कलश में सभी देवताओं का वास होता है । अत: पूजा में सबसे पहले कलश की स्थापना कर के देवताओं का आवाहन किया जाता है
पानी
कलश में पानी भर कर रखा जाता है । पानी को सर्वाधिक शुद्ध तत्व माना जाता है । संभवत: इसीलिये ये मान्यता भी है कि उसमें ईश्वरीय तत्व को आकृष्ट करने की क्षमता सर्वाधिक होती है ।
नारियल
कलश पर नारियल रखने से उसकी शिखा में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है ,जो कलश के जल में प्रवाहित होती है । इस प्रक्रिया में कलश में जल में तरंगे एक नियमित लय में उठती हैं ।
पंचरत्न :
पंचरत्नों में देवताओं के सगुण तत्व ग्रहण करने की क्षमता होती है । कलश के जल में पंचरत्न रखना त्याग का भी प्रतीक माना जाता है ।
सप्तनदियों का जल :
गंगा ,गोदावरी ,यमुना ,सिंधु ,सरस्वती ,कावेरी और नर्मदा - अधिकांश ऋषियों ने इन नदियों के तट पर ही देवताओं के तत्वों को प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी । सांकेतिक रूप में उनके तप के प्रभाव से शुद्ध हुयी नदियों के जल को हम देवताओं के अभिषेक स्वरूप कलश में रखते हैं । सप्तनदियों का जल न मिलने पर गंगा जल रखा जाता है ।
सुपारी और पान :
पान की बेल ,जिसको नागबेल भी कहते हैं , को भूलोक और ब्रम्ह्लोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है । इस में अवस्थित सात्विकता के फलस्वरूप इसमें भूमि तरंगों और ब्रम्ह तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है । कलश के जल में सुपारी डालने से उठने वाली तरंगे देवता के सगुण तत्व को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाती हैं ।
तुलसी - दल :
तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता सर्वाधिक होती है । तुलसी अपनी सात्विकता से जल के साथ देवता के तत्व को भी वातावरण में प्रेषित करती है ।
हल्दी - कुमकुम :
हल्दी जमीन की नीचे उगती है इसलिए उसमें भूमि तरंगों का प्रभाव बहुत अधिक होता है । कुमकुम हल्दी से ही बनती है ।
आम के पत्ते :
कलश में सभी सामग्री रखने के बाद आम के पांच अथवा सात पत्तों से ढंका जाता है । ऐसी मान्यता है कि देवता के आवाहन से कलश में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा आम की डंठल के द्वारा ग्रहण की जाती है । .... निवेदिता
सुपारी और पान :
पान की बेल ,जिसको नागबेल भी कहते हैं , को भूलोक और ब्रम्ह्लोक को जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है । इस में अवस्थित सात्विकता के फलस्वरूप इसमें भूमि तरंगों और ब्रम्ह तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है । कलश के जल में सुपारी डालने से उठने वाली तरंगे देवता के सगुण तत्व को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाती हैं ।
तुलसी - दल :
तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता सर्वाधिक होती है । तुलसी अपनी सात्विकता से जल के साथ देवता के तत्व को भी वातावरण में प्रेषित करती है ।
हल्दी - कुमकुम :
हल्दी जमीन की नीचे उगती है इसलिए उसमें भूमि तरंगों का प्रभाव बहुत अधिक होता है । कुमकुम हल्दी से ही बनती है ।
आम के पत्ते :
कलश में सभी सामग्री रखने के बाद आम के पांच अथवा सात पत्तों से ढंका जाता है । ऐसी मान्यता है कि देवता के आवाहन से कलश में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा आम की डंठल के द्वारा ग्रहण की जाती है । .... निवेदिता
हर वस्तु का अपना सार्थक स्थान है ....अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मूक पशुएं और सौदर्य प्रसाधन
पूजा में हर वस्तु का वैज्ञानिक महत्व भी होता है...जानकारी भरी पोस्ट!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंइन तमाम चीज़ों को अपने आसपास होते तो देखते हैं पर इनकी उपयोगिता के विषय में नहीं पता था। जानकारी भरी प्रस्तुति।।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी व नई जानकारी । वास्तव में बहुत से ऐसे क्रियाकलाप होते हैं जिन्हें हम अनजाने ही करते रहते हैं । स्तुति-स्तोत्र आदि के विषय में भी यही बात है । इस उपयोगी जानकारी के लिये आपका धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी और विस्तृत जानकारी ... अनजाने कि कितना कुछ करते अहिं पर उसका महत्त्व नहीं जानते ...
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी.
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