शनिवार, 18 जनवरी 2025

लिख लेखनी ...

 लिख लेखनी मन की भाषा ।

रह न जाये कोई अभिलाषा ।।


विधना देखे अँखियाँ मूंदे

बरस रही कर्मों की बूंदे ।

मावस पावस की प्यास नहीं 

मुक्ति की कोई आस नहीं ।।


पलकन हँसती जाये जिजीविषा

रह न जाये कोई अभिलाषा ।

लिख लेखनी मन की भाषा

रह न जाये कोई अभिलाषा ।।


ठगिनी दिखाये रोज तमाशा

लालसा बजाती ढ़ोल अरु ताशा ।

माया जिसके चरणन की दासी 

छोड़ विलास मन हुआ कैलासी ।।


निश्छल मन की बनाये मंजूषा 

रह न जाये कोई अभिलाषा ।

लिख लेखनी मन की भाषा 

रह न जाये कोई अभिलाषा ।।

... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ 

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