जब लक्ष्मण बेहोश थे और सूर्योदय के पहले संजीवनी चाहिए थी, उस पल की एक चाहत ...
हे सूर्य देव! हम तुम्हारे वंशज
आस लिए मन मे विश्वास लिए
तुमसे न उगने की आस करें
चमक तुम्हारी खनक तुम्हारी
मन को आज बड़ा डराएगी
कालिमा रात्रि की लुभायेगी
एक दिन तुम देर से आओ
निशा को कुछ पल और दो
तुम जो आ जाओगे गगन पर
सूर्य डूब जाएगा अयोध्या के
अनुपम सूर्यवंशी के वंश का
आ जाने दो पवनपुत्र को
बूटी संजीवनी की आस लिये
राह तके हम विश्वास लिए
अरिदल के मर्दन के लिए
सतयुग के स्थापन के लिए
जनकसुता को सम्मान दिलाने
सौमित्र को नवजीवन दो
उर्मिला की आस न रूठे
राम की प्रतिज्ञा न टूटे
तटबंध विश्वास का बचाओ
अहा वो दिखे हनुमत प्यारे
तर्जनी संजीवनी साध उठाये
अब चमको तुम पूर्ण तेज से
पिनाक की टंकार सुनाओ
सूर्यध्वज जग में लहराओ
आओ रवि दिग्दिगंत चमकाओ!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
सुंदर प्रस्तुति।
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