सुन जरा ओ राजमहिषी
ऐसा जीवन कैसे जिया होगा!
सच बता ओ कैकेयी
पल-पल गरल पान किया होगा!
यहाँ-वहाँ की बातों में
तपती जलती रातों में
शर सन्धान किये होंगे
उर भिगोती बरसातों में
सच बता ओ कैकेयी
उधड़ी सीवन कैसे सिया होगा!
दशरथ ने ली अन्तिम शय्या
काल बन कर आया छलिया
पुत्र शोक में देख विह्वल
क्यों न भीगी तेरी अँखियाँ
सच बता ओ कैकेयी
वनवास कैसे दिया होगा!
राम सबल पुत्र थे मेरे
बहुत बड़ी आस हमारे
रामराज्य की आस लिए
वचन याद दिलाते तेरे
सच बताऊँ ऐ युग पुरूष
आगे-पीछे क्या-क्या न सोचा होगा!
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
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