अनाड़ी दुनियादारी में
उलझ रही थी जिम्मेदारी में
कुछ नए तो कुछ पुराने थे
रिश्तों की महकी क्यारी में !
उन धागों को सम्हाल रही थी
सपने नयनों में पाल रही थी
नन्हे कदमों ने दी जब दस्तक
ममता का झूला डाल रही थी !
बातें लगतीं कितनी अनजानी
दिल करता अपनी सी मनमानी
हर पल जीवन बदल रहा था
लिख रहा था इक नई कहानी !
#निवेदिता_श्रीवास्तव_निवी'
#लखनऊ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें