जब भी यात्रा की बात होती है ,तब सबसे पहली याद जिस स्थान की यात्रा की आती है ,सम्भवतः उस स्थान का नाम भी बहुत कम लोगों को ही पता होगा । यह भी बहुत बड़ा सच है कि उस यात्रा के बाद अनगिनत स्थानों पर गई हूँ पर उतना आनन्द और रोमांच किसी बार भी नहीं मिला । आज यात्रा की बात ने फिर से यादों के गलियारे उन्ही लम्हों की धूल बुहार दी ।
जमींदारी समाप्त होने के दौर में पुरखों की जमींदारी का विशाल साम्राज्य सिमटते हए ,बाबा के समय तक एक गाँव मलौली ,जो कि गोरखपुर के पास ही था ,तक पहुँच गया था । वहाँ की हमारी पुरखों की डेहरी से मम्मी को बहुत लगाव था । जीर्णोद्धार कहना या सोचना भी उनको असम्भव कल्पना लगती थी ,तो उनके मन में उस को सँवारने की प्रबल इच्छा जगी और उसको पूरा भी किया ।
देहरी पूजने जाने का कार्यक्रम भी वृहत स्तर पर बना । सभी रिश्तेदारों को बलिया ,उस समय पापा वहाँ पोस्टेड थे बुलाया गया और सबके साथ यात्रा हुई । मैं बहुत ही छोटी थी और सिर्फ़ इतना ही समझ आया कि बाबा ,जो कि तब तक गोलोकवासी हो चुके थे ,के पैर छूने जाना है ।
आज से दशकों पहले की बात है कई कार की व्यवस्था हुई और उससे हम सब बलिया से गोरखपुर की कौड़ीराम तहसील पहुँचे । उसके बाद मलौली तक का रास्ता हमको बैलगाड़ी ,पालकी और रथ पर करना था । सभी स्त्रियाँ पालकी में , बाकी के सब रथ पर और सामान बैलगाड़ी पर और इस पूरे काफ़िले को अपने सुरक्षा घेरे में ले कर ,बड़ी - बड़ी लाठियाँ लिए हुए लठैत चल रहे थे । पहले तो मुझे भी पालकी में ही बैठाया गया था परन्तु मेरे बालमन को रथ का लालच जगा और भाइयों के साथ मैं भी वहीं पहुँच गयी । सारे रास्ते आनेवाले पेड़ - पौधों के बारे में पूछ - पूछ कर अपने जंगली कक्का का दिमाग उलझाये रखा मैंने और वो भी मजे लेते मेरी जिज्ञासा शांत करते रहे ।
पुरखों की डेहरी पहुँचने पर वहाँ उमड़े लोगों का प्यार और सम्मान का भाव मुझ नासमझ को भी अभिभूत कर गया । जब तक हम वहाँ रहे उनलोगों ने हमें अपनी पलकों पर रखा । पापा मम्मी ने भी उनकी बहुत सारी समस्याओं को सुलझाया ।
वापसी की यात्रा भी इतनी ही रोमांचक थी परन्तु कहीं न कहीं विछोह का भाव हमारे दिलों से उमड़ कर पलकों के रास्ते बह चला था ।
सम्भवतः मैं अपनी अन्तिम साँस तक इस यात्रा के अनुभव और वहाँ मिले दुलार को कभी भूल नहीं पाऊँगी । #निवी
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-10-2021) को चर्चा मंच "शरदपूर्णिमा पर्व" (चर्चा अंक-4223) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!सुंदर संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंसच ऐसे संस्मरण सहेजें रहते हैं हृदय प्रांगण में सदा सदा के लिए।
सुंदर संस्मरण
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