बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

कितना सफर है बाकी ...

 कितना सफर है बाकी 

कहाँ तक चलना होगा

कहाँ ठिठकनी है साँस

बांया ठिठका रह जायेगा 

या दाहिना चलता जायेगा !


फिर सोचती हूँ

क्यों उलझ के रह जाऊँ

गिनूँ क्यों साँस कितनी आ रही

आनेवाली साँस को नहीं बना सकती

गुनहगार जानेवाली साँस का !


ऐ ठिठकते कदम ! 

गिनती भूल चला चल

पहुँचने के पहले क्यों सोचूँ

अभी बाकी कितनी है मंज़िल !


जब तक चल सकें चलते रहें

सुर - ताल का अफसोस क्यों करें 

थामे हाथों में हाथ रुकना क्या 

तुम रुको तो मैं चलूँगी

मैं रुकूँ तो तुम चलना 

सफ़र तो सफ़र ही है !


सफ़र मंज़िल की नहीं सोचता 

सफ़र तो बस देखता है राही 

चलो हमराही बन चलते जायें

मंज़िल जब आनी है 

आ ही जायेगी

क्षितिज पहला कदम किसका क्यों सोचें ! #निवी

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