कितना सफर है बाकी
कहाँ तक चलना होगा
कहाँ ठिठकनी है साँस
बांया ठिठका रह जायेगा
या दाहिना चलता जायेगा !
फिर सोचती हूँ
क्यों उलझ के रह जाऊँ
गिनूँ क्यों साँस कितनी आ रही
आनेवाली साँस को नहीं बना सकती
गुनहगार जानेवाली साँस का !
ऐ ठिठकते कदम !
गिनती भूल चला चल
पहुँचने के पहले क्यों सोचूँ
अभी बाकी कितनी है मंज़िल !
जब तक चल सकें चलते रहें
सुर - ताल का अफसोस क्यों करें
थामे हाथों में हाथ रुकना क्या
तुम रुको तो मैं चलूँगी
मैं रुकूँ तो तुम चलना
सफ़र तो सफ़र ही है !
सफ़र मंज़िल की नहीं सोचता
सफ़र तो बस देखता है राही
चलो हमराही बन चलते जायें
मंज़िल जब आनी है
आ ही जायेगी
क्षितिज पहला कदम किसका क्यों सोचें ! #निवी
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