बुधवार, 28 अप्रैल 2021

ज़िन्दगी ....

 ज़िन्दगी ने कल यूँ ही चलते चलते रोकी थी मेरी राह 

आँखों में डाल आँखें पूछ  डाली थी मेरी चाह


ठिठके हुए कदमों से मैंने भी दुधारी शमशीर चलाई

क्या तुम्हें सुनाई नहीं देती किसी की बेबस मासूम कराह


ज़िंदगी कुछ ठिठक कर शर्मिंदा सी होकर मुस्कराई

सुनते सुनते सबकी कठपुतली बन गई हूँ रहती हूँ बेपरवाह


आज मैं भी कुछ अनसुलझे सवाल अपने ले कर हूँ आई 

दामन जब खुद का खींचा जाता तभी क्यों निकलती आह


गुनगुनाती कलियों की चहक से भरी रहती थी  अंगनाई

कैसे बदले हालात किसने कर दिया मन को इतना स्याह


हसरतों ने बरबस ही दी एक दुआ और ये आवाज लगाई

बेपरवाह ज़िंदगी इस 'निवी' को तुझसे मुहब्बत है बेपनाह।

                .... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. सवाल जवाब करते रहना चाहिये, दुविधा की बदलियां छट जाती हैं और आगे का रास्ता साफ़ और सटीक दिखने लगता है...सुन्दर लेखन

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