शनिवार, 10 अप्रैल 2021

लघुकथा : चढ़ता पारा

 "क्या हो गया ? लेटी क्यों हो ? अरे यार !सुबह का समय है ,ऑफिस जाना है मुझे ,अब जल्दी से बता भी दो ... ये क्या सुबह - सुबह मनहूसियत फैला रखी है ... जल्दी से चाय बना लाओ ", फ़ोन ,लैपटॉप ,पेपर सब को सामने रखते हुए अवी झुंझला रहा था ।


बिस्तर से उतरती हुई दिवी के लड़खड़ाने पर उसकी निग़ाह पड़ गयी ,"क्या हुआ ? अरे तुम्हारा तो बदन गर्म लग रहा है । बुखार देखा कितना है ? जाओ जल्दी से थरमामीटर ले आओ ,तुम्हारा टेम्परेचर देखूँ ... और सुनो थरमामीटर धो कर लाना ।"

"अच्छा ले आयी ... चलो अब ज़ुबान के नीचे रख लो ,मैं देखता हूँ ... हाँ ! हाँ ! इधर घूम के बैठो तभी तो देख पाऊंगा ,अब उतनी देर खड़ा रह कर क्या कर लूँगा । अरे देख तो रहा हूँ ,तुम बिल्कुल परेशान न होओ । देखो बढ़ रहा है ... 90 ... 91 ... 92 ... 93 ... 94 ... लाओ दो मुझको और क्या देखना 94.8 हो तो सामान्य होता है न ... क्या फ़ालतू में थरमामीटर को मुँह में रखे टेम्परेचर बढ़ने का इंतजार करना ... एकदम ठीक हो तुम । बस अब जल्दी से चाय दे कर टिफ़िन भी पैक कर दो । दिन में सो जाना ,नहीं तो कहोगी तुम्हारा ध्यान नहीं रखता मैं !"

दिवी ने हँसी रोकते हुए उसके हाथ से थरमामीटर वापस लेते हुए कहा ,"अभी पारा चढ़ रहा है ।"
#निवी

2 टिप्‍पणियां:

  1. पारा भी कई तरह का चढ़ता .... थर्मामीटर में भी और .....
    अवि को पता नहीं शायद कि नार्मल टेम्प्रेचर 94.8 nahi .. 98.6 होता है ...

    मारक लघु कथा .

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