मंगलवार, 12 जनवरी 2021

गलियाँ यादों की (१)

यादों के गलियारे में दस्तक दे ही रही थी कि एक याद ने अनायास ही दामन थाम लिया । हिन्दी दिवस और हिन्दी भाषा से जुड़ी हुई है यह याद 😊


एक बार हिन्दी - दिवस पर अमित जी के साथ ही उनके पूर्व छात्र सम्मिलन में गयी थी । वहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम में सब की सहभागिता का आनन्द ले रही थी कि अचानक ही मंच से उद्घोषक की आवाज़ आयी ,"अब आप सब के समक्ष मिसेज अमित अपनी एक रचना सुनाएंगी ... स्वागत है आपका ।" सब के साथ मैं भी तालियाँ बजा रही थी उनके स्वागत में । तभी उद्घोषक ने मेरी तरफ़ देख कर हँसते हुए फिर कहा ,"दो अमित हैं तो कन्फ्यूज़न हो रहा है न ! अब मैं अलग तरह से बुलाता हूँ ... आइये मिसेज बमबम ।" दरअसल मेरे पति को उनके मित्र 'बमबम' कहते हैं । बहरहाल इस अचानक आये बाउंसर को झेलते हुए मोबाइल की तलाशी ली और एक रचना सुना दी । और हाँ ! तालियाँ भी बटोर लीं 😅😅


बाद में हम सब बातें कर रहे थे तो एक महिला एकदम चुप बैठी बस सुन रही थीं । एकाध बार उनको भी बातों में शामिल करने का प्रयास किया, पर वो प्यारी सी मुस्कान दे चुप ही रह गईं । थोड़ी देर बाद अकेले मिलते ही बातें करने लगीं और बोलीं ,"असल में मुझे अंग्रेजी नहीं आती है । यहाँ अधिकतर वही बोलते हैं तो मैं चुप ही रहती हूँ । " मैंने उनसे बातें की और मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया कि मैं भी हिन्दी ही बोलती हूँ । 


बातों में ही पता चला कि उनका और मेरा मायका एक ही है ,गोरखपुर ! मैंने छूटते ही कहा ,"का बहिनी अब ले छुपवले रहलू ।" वो एकदम ही संकुचित हो गईं ,"अरे ऐसे न बोलिये ,सब इधर ही देख रहे हैं ।" मैंने उनको समझाया कि अपनी भाषा अपनी ही है ,इसमें कोई शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए । फिर मैं भोजपुरी ही बोलती रही और वो हिन्दी । इस तरह उनकी अंग्रेजी में न बोल पाने की हिचक थोड़ी कम हुई । 


उस शाम और मेरे इस तरह बिंदास भोजपुरी और हिन्दी बोलने से हमारे समूह को उनके रूप में एक और हिन्दी की कवयित्री मिल गयी । 

                  ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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