नवगीत
पूजन का ये थाल सजाये
सुख - सुहाग माँगू हर पल !
सरस सलिल सी बहती धारा
घाट - घाट चलती लहराती
संग पथिक दो चलते हर पल
मलयानिल उनको महकाती
तिरछी चितवन नेह बसाए
बढ़ते जाते बन सम्बल !
चन्द्र किरण मद में बलखाती
रजनी अंचल बीच छुपाये
इत उत झाँके बन शोख अदा
ललित रूप उर को भरमाये
मन बरबस ही गाता जाये
जीवन नदिया हो निर्मल !
पवन झकोरा आये साथी
अलबेली यादें ले आया
बदली से झाँके जब चन्दा
साँसों में मधुमास है छाया
उदित चन्द्र की पुलकित आभा
प्रियवर तुम 'निवी' के उज्ज्वल !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की बधाई हो।
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर सरस भाव रचना।
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