लघुकथा : वेंटिलेटर
सघन चिकित्सा - कक्ष से बाहर आ कर डॉक्टर ने कहा ," जयेश जी को वेंटिलेटर के सहारे साँसें भरते आज सातवाँ दिन हो गया है परन्तु उनमें सुधार के कुछ भी लक्षण नहीं दिख रहे हैं ।"
जयेश की पीड़ा से विक्षिप्त सी जया जैसे कुछ समझ ही नहीं पा रही हो ,"डॉक्टर साहब आप कहना क्या चाहते हैं ? "
"देखिये सुनने में ये बात बहुत गलत भी लग सकती है ,परन्तु परिवार को मरीज की वस्तुस्थिति बताना हमारा कर्तव्य है । जयेश जी की जैसी स्थिति है ,उसमें कुछ उम्मीद नहीं लग रही है । अब ये तो दिन टालने जैसी बात है कि आप कृत्रिम साधनों से कब तक उनके शरीर को सुरक्षित रखते हैं । इसमें आपका धन तो जायेगा ही साथ ही साथ आपके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ेगा ।"डॉक्टर ने अपनी बात स्पष्ट की ।
जया तड़प उठी ,"मतलब क्या है आपका ... मैं पैसों के लोभ के पीछे अपने जयेश की साँसें छीन लूँ !"
"नहीं जया जी ,शायद मैं अपनी बात आपको समझा नहीं पाया । देखिये यहाँ पर ऐसे मरीज आते हैं जिनको चिकित्सा की तुरन्त जरूरत होती है । ऐसी परिस्थिति में हमारा प्रयास रहता है कि उनको तुरन्त सभी सुविधाएं मिल सकें । "
डॉक्टर अभी बोल ही रहे थे कि जया ने टोका ,"आप कीजिये न आपको कौन रोक रहा है ।"
डॉक्टर ने जया की बात का उत्तर बहुत शान्ति से दिया ,"जयेश जी के प्रति आपका मोह स्वभाविक है ,परन्तु उनके मोह में आप उनको वेंटिलेटर से नहीं हटा रही हैं । बताइये दूसरे किसी मरीज को हम कैसे भर्ती करें । यदि आप जयेश जी को सदैव के लिये जीवित रखना चाहती हैं ,तो उनके अंगों को दान कर दीजिए । इससे कई लोगों को जीवन मिल जायेगा और उनकी प्रतिछवि बन कर जयेश जी को आप सदैव महसूस भी कर पायेंगी ।"
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
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