बुधवार, 24 जून 2020

लघुकथा : दीवाल


लघुकथा : दीवाल

चाय पीने का मूड हो रहा ..

 अच्छा ...

साथ में ऑमलेट भी बना लो ,मजा आ जायेगा ...

ठीक ...

और सुनो टोस्ट करारे सेंकना ...

ठीक ...

ये क्या हर बार एक शब्द 'ठीक' बोल रही हो । मैं बात कर के बात खत्म करने की कोशिश कर रहा हूँ और तुम वहीं अटकी हुई हो ...

मूक नजरें और भी चुप ...

अरे यार होता है न कभी - कभी ... हम एक दूसरे के पन्चिंग बैग ही तो हैं । टेंशन उतारो फिर साथ - साथ ...

शायद तुम भूल गए हो कि पन्चिंग बैग की सहनशक्ति समाप्त होने पर अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति बदल कर  बड़ी मजबूत दीवाल बन जाता है ... एक चुप पर अप्रभावित दीवाल ...
          ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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