मंगलवार, 12 नवंबर 2019

लघुकथा : एहसास संस्कारों का

लघुकथा : एहसास संस्कारों का

पूजा का सामान संजोते हुए ,तृषा ने एक लिफ़ाफा भी रख लिया था ,बड़े भाई के टीका का सामान मिलने पर देने के लिये । सच कितने वर्ष बीत गए चौक के पाटे पर भाई का टीका किये । भीगी पलकें सुखाने के लिये उठे हुए उसके हाथ ,घण्टी की आवाज पर ठिठक से गये ।आहा ... सामने बड़े भाई को लिये हुए उनका बेटा अवि  खड़ा था ,मुस्कराता हुआ भइया को सम्हाले !

 तृषा अपने अंतरमन तक तृप्ति का अनुभव करती भतीजे अवि को लाड़ करती दुआओं से भर दिया था । भावातिरेक में बोल उठी ,"बेटा तुमने बहुत बड़ा एहसान किया ,भइया को यहाँ ला कर । मेरी वर्षों की चाहत पूरी हो गयी । बहुत बड़ा उपकार किया बेटा तुमने । "

अवि ने हँसते हुए अपने पिता और बुआ के हाथों को थाम लिया ,"बुआ - पापा मैं अपने बचपन से ही आप दोनों को इस त्योहार पर जिम्मेदारियों की वजह से मन मसोसते हुए देखता आया हूँ । अब मैंने ये निश्चय किया है कि हर वर्ष इस दिन आप दोनों साथ होंगे । जब जिसको सुविधा होगी ,मैं एक दूसरे के पास ले आऊंगा । और बुआ मैंने यह कोई उपकार नहीं किया है । यह तो सिर्फ आप लोगों के दिये हुए संस्कार हैं । "
       .... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-11-2019) को      "गठबन्धन की नाव"   (चर्चा अंक- 3518)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 13 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ये लघुकथा मैंने 2-3 दिन पहले फेसबुक पर पढ़ी थी, किसी और के नाम से।

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