शनिवार, 9 नवंबर 2019

गीत : खुला ईश का द्वार है

हरि हमेशा खुला ईश का द्वार है
मुक्ति के बिना सकल विश्व निस्सार है

चाहती हूँ मिले मेंहदी की महक
हर कदम पर बिछा तप्त अंगार है

वासना से भरी है मचलती लालसा
मुश्किलों से मिला अब यहाँ प्यार है

जाल में फँसा तड़पाता ये मानव
चाँदनी को निगलता निशा का प्यार है

सिसकती वो रही सिमटती बिखरती
मुक्ति की कल्पना भी निराधार है
     ... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें