मेहंदी का कोन
यूँ ही लहराता सा
झूम रहा था
सबने पूछा
फूल पत्ती
आकाश समंदर
क्या बना रही हो
मैंने बस यही कहा
मैं कहाँ कुछ बना रही
ये मेहंदी तो
बस यूँ ही थिरक गयी
देखो न ये क्या बन गया
कुछ रेखायें सी उभरी हैं
इनके बीच सितार झंकृत हो गया
तुम्हारा नाम रच गया
मेरी मेहंदी की लकीरों में ....... निवेदिता
यूँ ही सार्थक होता है मेंहदी का रंग ... जब प्रेम के निशान उभर आते हैं ... सुंदर शब्द ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-10-2018) को "सब बच्चों का प्यारा मामा" (चर्चा अंक-3138) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'