शनिवार, 19 अगस्त 2017

एक रीत बदल दूँ ........


सोचती हूँ इस जमाने की 
एक रीत बदल दूँ मैं भी 
शाहजहाँ ही क्यों बनाये 
ये दिलफरेब ताजमहल 
इस ख़्वाब की तामीर करूँ मैं 
पर ये क्या ....
तुमने जो ये पलकें झपकाई
ये क्या चमक सा गया
छोड़ो जी अब दुबारा क्या बनाना
मेरी जिंदगी के हो तुम ताज
अब उस महल से क्या दिल लगाना .... निवेदिता

4 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी जिंदगी के हो तुम ताज ..... 👌👌

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  2. कितने कम शब्दों में मन का असीम विस्तार !! बहुत सूंदर रचना !!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-08-2017) को "बच्चे होते स्वयं खिलौने" (चर्चा अंक 2703) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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