मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा सच है पर इसके जिक्र भर से ही सब परेशान हो जाते हैं और ऐसे देखते हैं जैसे कितनी गलत बात कर दी गयी हो | जबकि देखा जाये तो जन्म की तरह ही मृत्यु एकदम सहज और अवश्यम्भावी घटना है | जिस भी चीज ,जीवित अथवा निर्जीव ,का सृजन हुआ है उसका संहार तो होना ही है |
अक्सर ये प्रश्न मन को मथता है मृत्यु जन्म है या जन्म ही मृत्यु | इस सोच के पीछे मूलतः ये सोच रहती है कि जब जन्म लिया तभी तो मृत्यु आ सकती है और जब मृत्यु आएगी तभी तो जन्म ले पाएंगे | तुलसीदास जी ने भी कहा है ....
"तुलसी या धरा को प्रमाण यही है
जो जरा सो फरा
जो फरा सो ज़रा
जो बरा सो बुताना "
पहले ही माफ़ी तुलसीदास जी के शब्द एकदम शब्दशः नहीं लिख पायी ,पर काफी हद तक पहुँच गयीं हूँ |
एक प्रश्न और सोच को थामता है कि मृत्यु शरीर का अंत है या शरीर के पूर्ण होने का पल | इस सोच के पीछे भी एक ही दर्शन है कोई भी चीज जब अपना सम्पूर्ण विस्तार पा जाती है तो उसका क्षरण प्रारम्भ हो जाता है इस लिहाज से मृत्यु जन्म ही है .....
ये भी लगता है मृत्यु है क्या ..... क्या सिर्फ सतत आने जाने वाली साँसों का थमना ही मृत्यु है या फिर याद किये जाने लायक व्यवहार या कर्मों का न होना मृत्यु है ! मृत्यु से सिर्फ शरीर ही नहीं समाप्त होता है अपितु किसी के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश भी समाप्त हो जाता है | पर हाँ अगर हमारे कर्म और व्यवहार अच्छे होते हैं तो लोग अपनी यादों में ही हमें जिन्दा रखते हैं |
मृत्यु के विषय में जितना भी और जिस भी मनःस्थिति में सोचा है ,सबके मूल में सिर्फ एक ही तत्व पाया है और वो है जुड़ाव के भय का | हम जिनसे भी मन या समाज के स्तर पर कहीं न कहीं जुड़े होते हैं ,उनके बारे में कमियाँ पता होने के बाद भी हम उनके गलत कार्यों की भर्त्सना करते हुए भी उनकी सलामती की कामना करते हैं | इस मनःस्थिति का सबसे ज्वलंत उदाहरण मंदोदरी है | रावण जब जब बलात किसी स्त्री का अपहरण करता मंदोदरी उसके विरोध में ही खड़ी रहती पर उसी रावण के अमरत्व के लिये उसने तप भी किया | शायद ये मन का जुड़ाव और बुद्धि से मृत्यु की कामना की उलझन ही थी | इस तरह मृत्यु जुड़ाव का दूसरा नाम भी लगता है मुझको तो !
ये भी लगता है कि मृत्यु एक सतत चलनेवाली प्रक्रिया ही है ,किसी भी संशय अथवा उस संशय के परिणाम से भी परे | मृत्यु सिर्फ मृत्यु है जो किसी अपने की हो तो अपने ही शरीरांश के कटे हुए होने जैसी बहुत पीड़ा दे जाती है ,किसी परिचित की हो तो श्मशान वैराग्य हो जाता है और जब वो सिर्फ एक खबर हो तो एक जिज्ञासा और मृतक के कर्मफल का विवेचन ही होती है ............ निवेदिता
#हिंदी-ब्लॉगिंग
"तुलसी या धरा को प्रमाण यही है
जो जरा सो फरा
जो फरा सो ज़रा
जो बरा सो बुताना "
पहले ही माफ़ी तुलसीदास जी के शब्द एकदम शब्दशः नहीं लिख पायी ,पर काफी हद तक पहुँच गयीं हूँ |
एक प्रश्न और सोच को थामता है कि मृत्यु शरीर का अंत है या शरीर के पूर्ण होने का पल | इस सोच के पीछे भी एक ही दर्शन है कोई भी चीज जब अपना सम्पूर्ण विस्तार पा जाती है तो उसका क्षरण प्रारम्भ हो जाता है इस लिहाज से मृत्यु जन्म ही है .....
ये भी लगता है मृत्यु है क्या ..... क्या सिर्फ सतत आने जाने वाली साँसों का थमना ही मृत्यु है या फिर याद किये जाने लायक व्यवहार या कर्मों का न होना मृत्यु है ! मृत्यु से सिर्फ शरीर ही नहीं समाप्त होता है अपितु किसी के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश भी समाप्त हो जाता है | पर हाँ अगर हमारे कर्म और व्यवहार अच्छे होते हैं तो लोग अपनी यादों में ही हमें जिन्दा रखते हैं |
मृत्यु के विषय में जितना भी और जिस भी मनःस्थिति में सोचा है ,सबके मूल में सिर्फ एक ही तत्व पाया है और वो है जुड़ाव के भय का | हम जिनसे भी मन या समाज के स्तर पर कहीं न कहीं जुड़े होते हैं ,उनके बारे में कमियाँ पता होने के बाद भी हम उनके गलत कार्यों की भर्त्सना करते हुए भी उनकी सलामती की कामना करते हैं | इस मनःस्थिति का सबसे ज्वलंत उदाहरण मंदोदरी है | रावण जब जब बलात किसी स्त्री का अपहरण करता मंदोदरी उसके विरोध में ही खड़ी रहती पर उसी रावण के अमरत्व के लिये उसने तप भी किया | शायद ये मन का जुड़ाव और बुद्धि से मृत्यु की कामना की उलझन ही थी | इस तरह मृत्यु जुड़ाव का दूसरा नाम भी लगता है मुझको तो !
ये भी लगता है कि मृत्यु एक सतत चलनेवाली प्रक्रिया ही है ,किसी भी संशय अथवा उस संशय के परिणाम से भी परे | मृत्यु सिर्फ मृत्यु है जो किसी अपने की हो तो अपने ही शरीरांश के कटे हुए होने जैसी बहुत पीड़ा दे जाती है ,किसी परिचित की हो तो श्मशान वैराग्य हो जाता है और जब वो सिर्फ एक खबर हो तो एक जिज्ञासा और मृतक के कर्मफल का विवेचन ही होती है ............ निवेदिता
#हिंदी-ब्लॉगिंग
मृत्यु तो जन्म से भी बड़ा सच है...। जन्म को तो रोका भी जा सकता है, पर मौत नहीं...। पर इस सच से हर कोई भागना इस लिए चाहता है क्योंकि इसके साथ बहुत गहरी पीड़ा जुड़ी होती है ।
जवाब देंहटाएंमौत सच तो है ही ... पर कुछ सच भी पीड़ा देते हैं न ... इसका कारण इंसानी मोह होता है ... हम शायद अपनी मौत से नहीं बल्कि अपनों से बिछड़ने से डरते हैं.
जवाब देंहटाएंजो निश्चित है उसका भय नहीं होना चाहिए ,जुड़ाव जिससे हो उसकी हिफाजत करने को मन तत्पर होता है वह चाहे जीवित हो या निर्जीव , जब अपना एक कार्य पूरा हो जाता है हम दूसरा कार्य चुनते हैं, मृत्यु शरीर के उस रूप में हमारा कार्य पूर्ण हुआ समझना चाहिए नए जन्म के साथ नई जगह, नए लोगों के साथ नया कार्य का आरंभ ।
जवाब देंहटाएंवाकई जीवन का बड़ा सच है .... पर जाने क्यों इसके भय निकलना मुश्किल है |
जवाब देंहटाएंआदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर विषय उठाया है आपने
मृत्यु कटु एवं अकाट्य सत्य है
स्वजन की मृत्यु को कभी भी सहजता से नहीं स्वीकारा जा सकता
26 वर्ष पहले पिताजी के स्वर्गवास के बाद
लगभग दो वर्ष पहले मेरी माताजी का भी स्वर्गवास होने के बाद
मेरा सारा ज्ञान मेरा बौद्धिकपना चुक गया - सा लगता है
अरसे बाद ब्लॉग पर आना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजन्म लेने वाले का और कुछ निश्चित हो ना हो पर उसकी मृत्यु होगी यह निश्चित होता है
जवाब देंहटाएंमृत्यु कितना ही बड़ा सच हो..इससे भय लगता ही है|
जवाब देंहटाएंअपने अपनों की मौत का भय और उनके चले जाने पर दुःख,पीड़ा तो स्वाभाविक है...मुझे तो अपनी मौत से भी भय लगता है....कि मेरे बाद जो दुखी होंगे उनका दुःख मैं जीते जी महसूस करने लगती हूँ...
अजीब सी बात है पर सच है :(
अनु ,मैं भी कभी कभी कुछ उलझी मनःस्थिति में यही सोचती हूँ कि मैं निःश्वांस पड़ी हूँ और अपने और सपने दोनों की प्रतिक्रिया देखती हूँ और उस पर क्या कहूँ ........
हटाएंमृत्यु से भय इस बात पर भी निर्भर है कि व्यक्ति जीवन के किस पड़ाव पर है | सभी को पता है मृत्यु एक सत्य है पर उसे स्वीकारना आसान नहीं |
जवाब देंहटाएंगंभीर विषय ....मृत्यु शाश्वत सत्य है ...इससे डरना नहीं प्रेम करना चाहिए ...जब तक हम हैं तब तक हैं मर गए तो क्या गम है :)
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें ..... हिन्दी ब्लॉग दिवस का हैशटैग है #हिन्दी_ब्लॉगिंग .... पोस्ट लिखें या टिपण्णी , टैग अवश्य करें ......
जवाब देंहटाएंमौत ही जिंदगी की आखिरी मंजिल है
जवाब देंहटाएंहम दुनिया में आते हैं तो हम रोते हैं, बाकी सब हंसते हैं, जिंदगी पूरे अवसर देती है कि हम ऐसा करें कि जब मौत आए तो हम हंसे और बाकी सब रोएं
जय हो #हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत ही गहरी बात | इत्तेफाकन आजकल यही विषय मुझे भी उद्वेलित किये हुए है , और कुछ कुछ मैं भी सत्य को समझने का प्रयास कर रहा हूँ | सार्थक विमर्श
जवाब देंहटाएंमृत्यु एक विराम है, ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंमृत्यु तो अटल है जो पैदा हुआ उसकी यही नियति है पर अपनी मर्जी से आनंद पूर्वक इस नियति को स्वीकारने के लिये कोई तैयार नही है. जो इसे आनंद पूर्वक स्वीकार ले फ़िर उसकी क्या मृत्यु होगी? यही जीते जी मर जाने का सच है.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०९०
सही कहा मृत्यु और जीवन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
जवाब देंहटाएंलेकिन हम तो कहेंगे
ताऊ के डंडे ने कमाल कर दिया
ब्लोगर्स को बुला कमाल कर दिया
#हिंदी_ब्लोगिंग जिंदाबाद
यात्रा कहीं से शुरू हो वापसी घर पर ही होती है :)
जिसका जन्म हुआ उसे एक दिन मरना ही है, फिर भी हम इंसान सरलता से यह बात कहाँ समझ पाते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विचारशील प्रस्तुति
बहुत दिनों बाद ब्लॉग में आना हुआ
जवाब देंहटाएंKya kahen ispar.........
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन.....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जो आया है वह तो जाएगा, संसार इसी को कहते हैं --
जवाब देंहटाएंसार्थक और मन को छूती बात कही है
सादर
आभार आपका ........
जवाब देंहटाएंमृत्यु शाश्वत सत्य है,पर जीवन है तभी तक मोह माया और बंधन है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित लेख
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट !
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका योगदान सराहनीय है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
जन्म और मृत्यु तो बस दो छोर हैं, इनके बीच बहता जीवन है... दार्शनिक रचना!
जवाब देंहटाएंकुछ भी कह पाने में असमर्थ हूँ :(
जवाब देंहटाएंबड़ी मुश्किल से पूरी पोस्ट पढ़ी :(
कहना आसान नहीं है मृत्यु के बारे में ... गहरा रहस्य है ये जो शायद समझ से परे है ... हाँ ये एक अंत जरूरी है जीवन का ...
जवाब देंहटाएंमृत्यु निश्चित है कुछ भी कह लो कुछ भी कर लो टलना असंभव है
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